कायदे से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ रहने का कोई आधार नहीं दिखता है। दोनों बिल्कुल अलग राजनीति करते हैं और अरविंद केजरीवाल को पता है कि उनकी पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगा कर फल फूल सकती है। फिर भी यह सवाल उठ रहा है कि क्या ये दोनों पार्टियां आगे भी साथ रहेंगे? हालांकि अगले साल जनवरी में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में दोनों के साथ रहने की रत्ती भर भी संभावना नहीं है। आम आदमी पार्टी यह गलती नहीं करेगी क्योंकि फिर उसने जो वोट कांग्रेस से लिया है वह कांग्रेस को लौट जाएगा।
बहरहाल, दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं ने पंजाब में जिस तरह से एक दूसरे पर हमला करने से परहेज किया उससे यह सवाल उठा है कि आगे भी दोनों पार्टियों में किसी न किसी स्तर पर तालमेल बन सकता है। यह माना जा रहा था कि दिल्ली और हरियाणा में, जहां दोनों पार्टियां साथ लड़ रही थीं वहां मतदान खत्म होने के बाद पंजाब के प्रचार में दोनों पार्टियों की ओर से एक दूसरे पर जोरदार हमला होगा। लेकिन किसी राष्ट्रीय नेता ने एक दूसरे पर हमला नहीं किया। प्रदेश के नेता जरूर आपस में उलझे रहे लेकिन न तो राहुल गांधी ने आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार के लिए कुछ कहा और न अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को निशाना बनाया। उलटे केजरीवाल ने चंडीगढ़ में कांग्रेस के मनीष तिवारी के लिए रोड शो किया।