ऐसा नहीं है कि इस बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें सिर्फ सहयोगी दलों की मांग पूरी करनी होगी या उनका दबाव झेलना होगा। भाजपा के अंदर से भी दबाव बढ़ेगा। खास कर उन राज्यों से जहां भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं हुआ है और जहां आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं। सबसे पहले तो यह देखना दिलचस्प होगा कि शीर्ष चार मंत्रालयों में क्या होता है? पुराने लोगों की वापसी होती है या नए चेहरे आते हैं? पिछली बार यानी 2019 में जब मोदी दूसरी बार ज्यादा बड़े बहुमत से जीत कर आए तो उन्होंने शीर्ष चार में से तीन चेहरे बदल दिए। अरुण जेटली और सुषमा स्वराज को मौका नहीं मिला। राजनाथ सिंह को गृह से रक्षा में भेज दिया गया और अमित शाह की गृह मंत्री के तौर पर एंट्री हुई। अब क्या राजनाथ सिंह, अमित शाह, एस जयशंकर और निर्मला सीतारमण रहेंगे या इनमें कुछ बदलाव होगा?
महाराष्ट्र में अगले चार महीने में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और वहां भाजपा का प्रदर्शन बहुत खराब हुआ है। सो, भाजपा पर संतुलन बनाने का दबाव है। क्या देवेंद्र फड़नवीस को दिल्ली लाकर मंत्री बनाया जा सकता है? क्या नितिन गडकरी को महाराष्ट्र में चेहरा प्रोजेक्ट करने का फैसला हो सकता है और अगर ऐसा होता है तो क्या गडकरी मौजूदा हालात को देखते हुए इसके लिए तैयार होंगे? पंकजा मुंडे चुनाव हार गई हैं तो बड़ा ओबीसी चेहरा कौन होगा? मराठा चेहरा नारायण राणे रहेंगे या कोई नया लाया जाएगा? इसी तरह हरियाणा में भी चुनाव है और वहां भाजपा आधी सीटें हार गई है। मनोहर लाल खट्टर का पहले मंत्री बनना तय माना जा रहा था लेकिन अब भाजपा पंजाबी चेहरा आगे करेगी या ओबीसी चेहरा लाएगी? झारखंड में भाजपा का एक भी आदिवासी सांसद नहीं जीता है तो क्या अर्जुन मुंडा को मंत्री बना कर राज्यसभा भेजा जाएगा या पार्टी कुछ और करेगी? बिहार से इस बार राजीव प्रताप रूड़ी और रविशंकर प्रसाद दोनों का दबाव होगा।