राज्य-शहर ई पेपर पेरिस ओलिंपिक

बिहार में भाजपा का दलित-पिछड़ा समीकरण

भारतीय जनता पार्टी बिहार में हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने वाली नहीं है। उसने 2015 के विधानसभा चुनाव से सबक लिया है और राजद व जदयू गठबंधन के मुकाबले एक मजबूत गठबंधन बनाने का फैसला किया है। इसके लिए पार्टी की ओर से कई स्तर पर काम किया जा रहा है। सबसे पहले तो पार्टी यह छवि बदलने में लगी है कि वह ब्राह्मणों और बनियों या सवर्णों की पार्टी है। उसने राजद और जदयू के पिछड़ा समीकरण को चुनौती देने के लिए अपना भी दलित और पिछड़ा समीकरण बनाना शुरू किया है। हालांकि इस चक्कर में भाजपा का सवर्ण वोट संशय में फंसा है। एक तरफ भाजपा उनको बंधुआ मान कर उनको कम तवज्जो दे रही है तो दूसरी ओर राजद व जदयू पिछड़ा वोट को बंधुआ मान कर अगड़ों को तवज्जो दे रहे हैं। उनका एडवांटेज 15 फीसदी मुस्लिम वोट है।

बहरहाल, भाजपा ने बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन की दो सहयोगी पार्टियों को तोड़ कर एनडीए में लाने की पूरी तैयारी कर ली है। इसकी शुरुआत जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी के सरकार से इस्तीफा देने के साथ हो गई है। जल्दी ही मांझी की पार्टी के साथ भाजपा का तालमेल हो जाएगा। इससे पहले जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पार्टी छोड़ कर निकले थे और राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाया था। वे भी एनडीए में शामिल होंगे। महागठबंधन की सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी भी एनडीए में जा सकती है। इसके तीन विधायकों को तोड़ कर भाजपा ने अपने में मिला लिया था फिर भी इसके नेता मुकेश सहनी भाजपा के साथ जा सकते हैं। पासवान परिवार की दोनों पार्टियां पहले से भाजपा के साथ हैं। भाजपा ने कुशवाहा समाज के सम्राट चौधरी को पहले ही अध्यक्ष बनाया हुआ है। इस तरह भाजपा गैर यादव पिछड़ा, जिसमें कुशवाहा सबसे अहम है, उसे साध रही है। उसके साथ दलित और मल्लाह को भी जोड़ रही है। वैश्य और सवर्ण को भाजपा पक्के तौर पर अपने साथ मान रही है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *