कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में ऐसा सद्भाव बना है, जैसा दिसंबर 2013 में भी नहीं दिखा था। उस समय कांग्रेस ने अपने आठ विधायकों का समर्थन देकर भले केजरीवाल की सरकार बनवा दी थी लेकिन दोनों पार्टियों में दूरी बनी रही थी। कांग्रेस यह भूली नहीं थी कि केजरीवाल ने कैसे अन्ना हजारे को आगे करके आंदोलन कराया था, जिसकी वजह से कांग्रेस को न सिर्फ अपनी सत्ता गंवानी पड़ी थी, बल्कि पूरे देश में उसकी साख खराब हुई थी, जो अभी तक बहाल नहीं हो पाई है। एक बार केजरीवाल की सरकार बनवाने के बाद तो कांग्रेस दिल्ली से समाप्त ही हो गई। अब वहीं स्थिति पंजाब की हो गई है।
इस हकीकत के बावजूद कि केजरीवाल कांग्रेस का वोट काट कर आगे बढ़े हैं और लगातार कांग्रेस व उसके नेतृत्व के खिलाफ बोलते रहे हैं, कांग्रेस उनके प्रति सद्भाव दिखा रही है। दिल्ली और पंजाब की प्रदेश कमेटी के नेताओं की राय की अनदेखी करके कांग्रेस ने केजरीवाल से दोस्ती की है। बेंगलुरू में 18 जुलाई को विपक्षी पार्टिंयों की बैठक के बाद अरविंद केजरीवाल ने मीडिया को जो बयान दिया, उस पूरे वीडियो बयान को कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल से शेयर किया। बदले में केजरीवाल ने दिल्ली लौट कर अपने सभी प्रवक्ताओं से कहा कि वे कांग्रेस के खिलाफ कोई बयान नहीं देंगे।
सोचें, पटना में हुई 23 जून की बैठक के दिन आम आदमी पार्टी ने आधिकारिक रूप से कहा था कि कांग्रेस ने भाजपा से हाथ मिला लिया है। कांग्रेस तो खैर शुरू से आम आदमी पार्टी को भाजपा की बी टीम बताती रही है। लेकिन अब दोनों पार्टियां भाजपा से लड़ने के लिए एक साथ आ गई हैं। लेकिन सवाल है कि यह साथ कब तक बना रहेगा? कब तक दोनों पार्टियां एक दूसरे के प्रति सद्भाव दिखाती रहेंगी? कांग्रेस को केजरीवाल की महत्वाकांक्षा का पता है फिर भी वह आगे बढ़ने के लिए उनको अपना प्लेटफॉर्म क्यों उपलब्ध करा रही है?
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच तालमेल से कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है, जो हासिल होगा वह केजरीवाल को होगा। मिसाल के तौर पर अगर पंजाब में कांग्रेस और आप मिल कर लड़ते हैं तो कांग्रेस को अपनी जीती हुई सीटें आप के लिए छोड़नी होंगी। राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस के पास सात सीट है, जबकि आप का सिर्फ एक सांसद है। तालमेल करके कुछ भी हो जाए, कांग्रेस पिछली बार से ज्यादा सीट नहीं जीत पाएगी। इसी तरह दिल्ली में दोनों के पास लोकसभा की कोई सीट नहीं है और इस बात की संभावना कम है कि दोनों साथ आकर भी कोई सीट जीत पाएंगे। विधानसभा में आप को कांग्रेस से तालमेल करना नहीं है। फिर कांग्रेस को क्या फायदा होना है? इसी तरह क्या केजरीवाल इस साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे? अगर वे लड़ते हैं तो क्या कांग्रेस उनके लिए सीट छोड़ेगी? सो, यह सद्भाव ज्यादा दिन चलने के आसार नहीं हैं और अगर चलता है तो वह कांग्रेस की कीमत पर होगा।