यह अब लगभग तय हो गया है कि प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश की कमान छोड़ देंगी। एक तरह वे कमान छोड़ चुकी हैं। उनका उत्तर प्रदेश आना जाना बंद हो गया है और वे वहां की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही हैं। इसकी बजाय वे राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं। पिछले छह सात महीनों में जिन राज्यों में चुनाव हुए वहां उन्होंने सबसे सक्रिय भूमिका निभाई। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में उनका प्रचार बहुत हिट हुआ। उसके बाद अब वे उन राज्यों में बिजी हो गई हैं, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाला है। इसकी शुरुआत प्रियंका ने मध्य प्रदेश के जबलपुर की रैली से कर दी है।
अब सवाल है कि जब 2019 में प्रियंका गांधी को इतने फैनफेयर के साथ महासचिव बना कर उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था और उन्होंने खूब मेहनत भी की थी तो अब क्या हो गया कि वे अचानक उन्होंने प्रदेश छोड़ दिया है? इसका सीधा कारण तो यह है कि कांग्रेस को समझ में आ गया है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी का रिवाइवल नहीं होना है। प्रियंका या कोई कितनी भी मेहनत कर ले पार्टी अपने पैरों पर नहीं खड़ी होगी। असल में 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव ने प्रियंका और पूरी पार्टी के सामने असलियत जाहिर कर दी। लोकसभा में अमेठी से राहुल गांधी चुनाव हार गए और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ढाई फीसदी से भी कम वोट मिला।
सो, अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेताओं ने मान लिया है कि जैसे बिहार में राजद के साथ ही कांग्रेस का गुजारा है वैसे ही उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ ही उसका गुजारा हो सकता है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को हिचक थी, लेकिन उनके पास भी ज्यादा विकल्प नहीं है। तभी वे पटना की विपक्षी बैठक में शामिल हुए। बताया जा रहा है कि सपा और कांग्रेस के बीच लोकसभा चुनाव को लेकर तालमेल हो जाएगा और जब समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर कांग्रेस को लड़ना है तो प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे बड़े चेहरे की प्रभारी के तौर पर जरुरत नहीं है।
ध्यान रहे जब तालमेल नहीं होता है तब भी समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए दो सीट छोड़ती थी। अमेठी और रायबरेली से उसका उम्मीदवार नहीं होता है। हालांकि कुछ दिन पहले अखिलेश ऐसे संकेत दे रहे थे कि वे अमेठी से उम्मीदवार उतार सकते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। बताया जा रहा है कि जल्दी ही दोनों पार्टियों के बीच सीट बंटवारे को लेकर चर्चा होगी। हालांकि यह आसान नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस ज्यादा सीटों की मांग करेगी। मुस्लिम वोट पर कांग्रेस की दावेदारी मजबूत हई है और इस वजह से वह दबाव बनाएगी। लेकिन जानकार नेताओं का कहना है कि फिर भी सपा, रालोद और कांग्रेस की बात बन जाएगी। ध्यान रहे रालोद नेता जयंत चौधरी भी कांग्रेस को गठबंधन में लाने का दबाव बना रहे थे।