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चंदा कोचर के बाद माधवी पुरी की कहानी

भारत के पावर स्ट्रक्चर में गिनी चुनी महिलाएं ही बहुत सारी सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर तक पहुंच पाती हैं। राजनीति में तो जाति, धर्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि की वजह से कुछ महिलाओं को मौका मिल भी जाता है लेकिन वित्तीय सेक्टर में उनके लिए तरक्की की सीढ़ियां ज्यादा मुश्किल होती हैं। लेकिन यह बड़े अफसोस की बात है कि जो गिनी चुनी महिलाएं वित्तीय संस्थानों में शीर्ष पहुंची वे किसी न किसी विवाद में फंस गईं। ताजा मामला शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी की प्रमुख माधवी पुरी बुच का है। वे सेबी की पहली महिला अध्यक्ष हैं। वे 2017 में पूर्णकालिक सदस्य बनीं थी और 2022 से इसकी अध्यक्ष हैं। वे बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों के आरोपों से घिरी हैं। उनके ऊपर वित्तीय गड़बड़ी से लेकर पद के दुरुपयोग और हितों के टकराव के आरोप लगे हैं।

पहले हिंडनबर्ग रिसर्च ने बताया कि उनका निवेश उस कंपनी में है, जिसमें अडानी समूह का भी निवेश है और वह कंपनी शेयर बाजार में चुनिंदा कंपनियों के शेयरों में तेजी लाने के खेल से भी जुड़ी थी। ऐसे ही मामले में अडानी समूह की जांच सेबी को करनी थी। सो, यह हितों का टकराव भी था। अब सेबी के साथ साथ आईसीआईसीआई से वित्तीय लाभ लेने का मामला सामने आया है। माधवी पुरी बुच से पहले चंदा कोचर का मामला आया था। वे वीडियोकॉन कंपनी को लोन देने और उस कंपनी से अपने पति के भाई की कंपनी में निवेश कराने के मामले में फंसी थीं और काफी समय जेल में रहना पड़ा था। वे भी देश के सबसे बड़े निजी बैंक की प्रमुख बनने वाली पहली महिला थीं। ऐसे ही जिस समय शिखा शर्मा एक्सिस बैंक की प्रमुख थी, उसी समय एक्सिस बैंक के अनेक अधिकारी अवैध लेन देन में पकड़े गए थे। नोटबंदी के बाद कई घटनाओं से बैंक की बड़ी बदनामी हुई थी और इसके लिए शिखा शर्मा को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी जतानी पड़ी थी। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक की प्रमुख रहीं अरुंधति भट्टाचार्य भी अडानी समूह के ऑस्ट्रेलिया के विवादित कोयला खदान के प्रोजेक्ट को कथित तौर पर छह हजार करोड़ रुपए का कर्ज दिए जाने के मामले में विवादों में घिरी थीं।

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