उत्तर प्रदेश के बाद राजनीतिक रूप से दूसरे सबसे महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र में भाजपा का संकट खत्म नहीं हो रहा है। चार अक्टूबर के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा होगी और 25 नवंबर से पहले नई विधानसभा का गठन होना है। यानी कुल मिला कर तीन महीने से भी कम समय है। लेकिन भाजपा न तो अपनी रणनीति बना पा रही है और न सहयोगी पार्टियों के साथ तालमेल का फैसला हो रहा है। इतना ही नहीं विपक्षी गठबंधन यानी महाविकास अघाड़ी की पार्टियां कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार की ओर से जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं उसका भी जवाब भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों यानी महायुति के पास नहीं है।
ऊपर से दो सहयोगी पार्टियों यानी शिव सेना और एनसीपी में घमासान मचा है तो भाजपा और एनसीपी में भी सब कुछ ठीक नहीं है। गठबंधन के अंदर दो स्तर पर विवाद है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिव सेना के नेता तानाजी सावंत ने अजित पवार की एनसीपी को लेकर जो कहा वह मामूली नहीं है और न उस पर एनसीपी का पलटवार मामूली है। चुनाव से ठीक पहले इस तरह का झगड़ा गठबंधन को बहुत नुकसान करेगा। तानाजी सावंत ने कहा कि एनसीपी के नेताओं को देख कर ऊबकाई आती है, जवाब में अजित पवार की पार्टी ने भी इसी तरह का बयान दिया और साथ ही कह दिया कि अब या तो तानाजी सावंत गठबंधन में रहेंगे या अजित पवार की पार्टी रहेगी। अजित पवार के कैबिनेट की बैठकों में नहीं शामिल होने का ऐलान भी कर दिया गया।
दूसरी ओर भाजपा और एनसीपी के बीच भी संबंध अच्छे नहीं हैं। लोकसभा चुनाव में अजित पवार की पार्टी के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद भाजपा और आरएसएस के नेता तालमेल खत्म करने का दबाव बनाए हुए हैं। अब तो शरद पवार की पार्टी ने भी कहना शुरू कर दिया है कि अजित पवार की अब भाजपा को जरुरत नहीं है और चुनाव से पहले उनको गठबंधन से निकाला जाएगा। भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि उसके पास अजित पवार या उनकी पार्टी के पिछड़ी जाति के नेता छगन भुजबल का विकल्प नहीं है। मराठा और पिछड़ा दोनों वोट पर भाजपा ने ज्यादा मेहनत नहीं की। उसको लग रहा था कि एकनाथ शिंदे के साथ शिव सैनिक और अजित पवार के साथ मराठा आ जाएंगे तो काम चल जाएगा। लोकसभा चुनाव में कुछ हद तक शिव सैनिक तो शिंदे के साथ जुड़े लेकिन विधानसभा में उसकी गारंटी नहीं है।
सो, ऐन चुनाव से पहले भाजपा का संकट बढ़ा हुआ है। वह अजित पवार के बारे में फैसला नहीं कर पा रही है तो साथ ही यह भी फैसला नहीं कर पा रही है कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार पर हमला किया जाए या उनके साथ सद्भाव बनाया जाए। ध्यान रहे भाजपा के लिए महाराष्ट्र बाकी तीन राज्यों के साझा महत्व से ज्यादा महत्व रखता है। इसलिए चुनाव बाद की रणनीति पर भी उसको नजर रखनी है। तभी एक दिन उद्धव ठाकरे और शरद पवार पर हमला करने के बाद अमित शाह भी चुप हैं और भाजपा के नेता भी चुप्पी साधे हुए हैं। उलटे केंद्र सरकार ने शरद पवार को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा ऑफर कर दी, जिसे फिलहाल उन्होंने ठुकरा दिया है। इस बीच छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति गिर गई, जिसे शिंदे सरकार और भाजपा गठबंधन के लिए बेहद खराब संकेत माना जा रहा है।