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अजित पवार पर भाजपा की क्या रणनीति?

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भारतीय जनता पार्टी अजित पवार का किस तरह से इस्तेमाल करने वाली है? वे भाजपा के साथ रह कर महायुति के सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ेंगे या महायुति से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ेंगे और कांग्रेस व एनसीपी के वोट काटेंगे या वे एक बार फिर अपने चाचा शरद पवार के साथ लौट जाएंगे? इन सवालों के जवाब आसान नहीं हैं। अजित पवार को लेकर चौतरफा सस्पेंस बना हुआ है। इसका कारण यह है कि एक तरफ भाजपा के नेता सीधे तौर पर उनको बोझ बता रहे हैं तो दूसरी ओर पार्टी उनको उपकृत करने में भी लगी है। ये दोनों चीजें एक साथ कैसे हो रही हैं?

भाजपा ने अजित पवार की एनसीपी को अभी उपकृत किया है। उनकी पार्टी के सांसद और सुनील तटकरे को संसद की स्थायी समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। सोचें, अजित पवार की पार्टी का लोकसभा में सिर्फ एक सांसद हैं। उस एक सांसद वाली पार्टी को सरकार ने संसद की स्थायी समिति की अध्यक्षता दी है। वह भी पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसे जैसे अहम और मलाईदार मंत्रालय की स्थायी समिति की अध्यक्षता दी है। सुनील तटकरे को अजित पवार का सबसे भरोसेमंद माना जाता है। अजित पवार के बाद महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री सुनील तटकरे हुए थे। ध्यान रहे इस मंत्रालय में 70 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगाया था। यह कथित घोटाला अजित पवार और सुनील तटकरे के कार्यकाल का बताया जाता है। उन्हीं सुनील तटकरे की बेटी अदिति तटकरे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं। सो, एक सांसद वाली पार्टी को पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे अहम मंत्रालय की स्थायी समिति का अध्यक्ष बनाना अनायास हुआ फैसला नहीं है। इसका मतलब है कि भाजपा अजित पवार का कोई रोल देख रही है।

तभी इस बात की भी चर्चा है कि श्राद्ध खत्म होते ही नवरात्रों के पहले दिन विधानसभा परिषद की 12 सीटों का बंटवारा होगा और तीन सीटें एनसीपी को मिलेंगी। अगर ऐसा होता है तो इसका साफ मतलब होगा कि अजित पवार के बारे में कोई कुछ भी कहे वे कहीं नहीं जा रहे हैं। वे किसी न किसी रूप में भाजपा के काम हैं। तभी यह सवाल उठता है कि एक तरफ भाजपा आलाकमान उनके प्रति इतना सद्भाव दिखा रहा है और दूसरी ओर महाराष्ट्र के सबसे बड़े भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने उनको बोझ बता दिया। फड़नवीस ने कहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा इसलिए हारी क्योंकि भाजपा के समर्थकों को अजित पवार के साथ तालमेल पसंद नहीं आया और अजित पवार को एनसीपी का वोट भी नहीं मिला। हालांकि उन्होंने कहा कि अब 80 फीसदी चीजें ठीक हो गई हैं। चुनाव से पहले ऐसा कहने की जरुरत नहीं थी। ध्यान रहे भाजपा और संघ की ओर से पहले भी कई बार अजित पवार के बारे में इस तरह की बातें कही जा चुकी हैं। लेकिन अमित शाह और भाजपा के शीर्ष नेता सीट बंटवारे के बारे में उनसे बात कर रहे हैं। अमित शाह एक अक्टूबर को मुंबई जाने वाले हैं, जहां सीट बंटवारे पर चर्चा होगी। उस दिन भी सीट बंटवारे की चर्चा से अंदाजा होगा कि भाजपा अजित पवार की एनसीपी के बारे क्या सोच रही है। उस दिन यह भी पता चलेगा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पार्टी के साथ अमित शाह कैसे अजित पावर का सद्भाव बनवाते हैं।

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