यह लाख टके का सवाल है कि महाराष्ट्र में अजित पवार की पार्टी में क्या चल रहा है और खुद अजित पवार क्या सोच रहे हैं? उन्होंने परिवार से अलग होने के जो बयान दिए थे और अफसोस जताया था उससे ऐसा लगा था कि वे भाजपा गठबंधन से अलग होंगे। भाजपा के अंदर भी उनको लेकर असहज स्थितियां थीं और आरएसएस के लोग तो उनके साथ गठबंधन का शुरू से ही विरोध कर रहे थे। लेकिन अचानक सारी चर्चाएं थम गईं। अब नहीं कहा जा रहा है कि वे भाजपा छोड़ कर जा रहे हैं। उलटे वे भाजपा और शिव सेना के साथ सीट बंटवारे की बात कर रहे हैं और नवरात्रों में उनको विधान परिषद की तीन सीटें मिल सकती हैं।
ऐसा लग रहा है कि एनसीपी के संस्थापक शरद पवार को भी इसका अहसास हो गया है कि अजित पवार रणनीति के तहत उनको और उनकी पार्टी को उलझाए रखना चाहते हैं और मतदाताओं में मैसेज बनवा रहे हैं। यह अहसास होने के साथ ही शरद पवार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। उन्होंने सर्वोच्च अदालत में याचिका देकर कहा है कि एनसीपी का चुनाव चिन्ह ‘घड़ी’ फ्रीज किया जाए। यानी इसके इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए। असल में पार्टी टूटने के बाद अजित पवार गुट को असली एनसीपी माना गया और उसे ‘घड़ी’ चुनाव चिन्ह रखने दिया गया। शरद पवार की पार्टी को ‘तुरही बजाता हुई इंसान’ चुनाव चिन्ह मिला। इसी चुनाव चिन्ह पर वे लोकसभा का चुनाव लड़े और नौ सीटें जीतीं। लेकिन अब शरद पवार चाहते हैं कि अजित पवार को भी नया चुनाव चिन्ह दिया जाए। इसका मतलब है कि अजित पवार की हाल की भावनात्मक बातों के बाद शरद पवार आशंकित हैं कि विधानसभा चुनाव में घड़ी चुनाव चिन्ह का फायदा अजित को मिल सकता है।