महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री भले शिव सेना के नेता एकनाथ शिंदे हैं लेकिन भाजपा गठबंधन में सबसे ज्यादा चलती वाले नेता अजित पवार हैं। वे बहुत बाद में गठबंधन में शामिल हुए और अब भी कोई पूरे भरोसे के साथ यह नहीं कह सकता है कि वे टिके रहेंगे। इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी के सामने वे जो भी मांग रखते हैं उसे कबूल किया जाता है। यहां तक कि मुख्यमंत्री शिंदे के विरोध के बावजूद अजित पवार की हर बात मानी जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भाजपा चाहती है। भाजपा को लग रहा है कि अजित पवार मराठा वोट किसी तरह से भाजपा के साथ जोड़ सकते हैं। हालांकि यह सदिच्छा साबित हो सकती है।
बहरहाल, ताजा मामला जिलों के गार्जियन मंत्री नियुक्त करने का है। भाजपा ने एकनाथ शिंदे के विरोध के बावजूद अजित पवार को पुणे का गार्जियन मंत्री नियुक्त किया है। ध्यान रहे पुणे पवार परिवार का गढ़ है और वहां की कमान अजित पवार हर हाल में अपने हाथ में रखना चाहते थे। शिंदे के अलावा उनके रास्ते में एक बड़ी बाधा यह थी कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल वहां के गार्जियन मंत्री थे। पार्टी के आला नेताओं का उनके प्रति जबरदस्त सद्भाव है। इसके बावजूद अजित पवार के लिए उनसे जगह खाली करा ली गई। इससे पहले उप मुख्यमंत्री बनने के बाद अजित पवार वित्त मंत्रालय के लिए अड़े थे तब भी मुख्यमंत्री शिंदे के विरोध के बावजूद उनके वित्त मंत्रालय दिया गया। इसके लिए कई दिन तक विभागों का बंटवारा रूका रहा था। अब पांच फीसदी मुस्लिम आरक्षण का मामला है, जिसकी मांग अजित पवार कर रहे हैं। देखना है कि वे इस पर टिके रहते हैं या पुणे का गार्जियन मंत्री बनने के बाद पीछे हट जाते हैं?