अपने चाचा शरद पवार की पार्टी तोड़ कर एनसीपी पर कब्जा करने के बाद भी अजित पवार उप मुख्यमंत्री पद की ही शपथ लिए। सोचें, उन्होंने शरद पवार से किस बात की नाराजगी जताई थी? अजित पवार ने कहा था कि वे उप मुख्यमंत्री बन बन कर थक गए हैं। अब उनको मुख्यमंत्री बनना है। उन्होंने शरद पवार पर यह आरोप भी लगाया था कि 2004 के चुनाव में जब एनसीपी दो सीटें ज्यादा लेकर कांग्रेस से बड़ी पार्टी बन गई, तब भी शरद पवार ने मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस को ही दे दिया। वे चाहते थे कि उस समय एनसीपी मुख्यमंत्री का पद लेती और उनको मुख्यमंत्री बनाती। यह अलग बात है कि उस समय तक अजित पवार उप मुख्यमंत्री भी बनते थे। तब उनकी पार्टी से आरआर पाटिल को छगन भुजबल को उप मुख्यमंत्री बनाया जाता था। फिर भी अजित पवार मान रहे थे कि अगर एनसीपी को सरकार का नेतृत्व करने का मौका मिलता तो वे मुख्यमंत्री बन सकते थे।
लेकिन संयोग ऐसा हुआ कि वे पाला बदल कर दूसरे खेमे में जाने के बाद भी उप मुख्यमंत्री ही बने हैं। 2012 के बाद से पिछले 12 साल में उन्होंने छठी बार उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। भाजपा के साथ वे तीसरी बार उप मुख्यमंत्री बने हैं। पहले नवंबर 2019 में चार दिन के लिए फिर जुलाई 2023 में और फिर अब पांच दिसंबर 2024 को उन्होंने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उससे पहले वे दो बार पृथ्वीराज चव्हाण के साथ और एक बार उद्धव ठाकरे के साथ उप मुख्यमंत्री रहे। इस बार उनको लग रहा था कि दो गठबंधनों के बीच आमने सामने की लड़ाई में विधानसभा की संरचना ऐसी बनेगी कि वे दोनों में से किसी पक्ष के साथ मुख्यमंत्री पद के लिए मोलभाव कर पाएंगे। उनकी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन भी किया और उसका भी कारण यही था कि मराठा मतदाताओं को लगा कि इस बार अजित पवार सीएम बन सकते हैं। लेकिन संयोग ऐसा बना कि भाजपा अकेले ही बहुमत के करीब पहुंच गई और अजित पवार के मोलभाव की ताकत शून्य रह गई। तभी एकनाथ शिंदे थोड़ा तेवर भी दिखाते रहे लेकिन अजित पवार ने खुशी खुशी उप मुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया।