महाराष्ट्र में राजनीतिक प्रयोगों का राज्य बन गया है। चाहे सुबह छह बजे मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को शपथ दिलाने का मामला हो या शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार का बनना हो या शिव सेना का टूटना और एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री बनना हो या अब अजित पवार का भी उप मुख्यमंत्री बनना हो, सारे नए प्रयोग हुए हैं। इसी में एक बात और हुई है, जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। एक विधानसभा में तीन अलग अलग पार्टियां मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हैं। ऐसा संभवतः किसी और राज्य में नहीं हुआ हो कि एक विधानसभा में राज्य की तीन मुख्य पार्टियां मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हों। भाजपा और एनसीपी के बाद अब कांग्रेस की बारी दिख रही है।
पहले जब महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी तो भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। देवेंद्र फड़नवीस नेता प्रतिपक्ष बने। करीब ढाई साल तक भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी रही। उसके बाद शिव सेना टूट गई और भाजपा की मदद से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने तो एनसीपी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नाते मुख्य विपक्षी पार्टी बने। तब अजित पवार नेता प्रतिपक्ष बने। अब अजित पवार उप मुख्यमंत्री हो गए हैं तो एनसीपी ने जितेंद्र अव्हाड को नेता विपक्ष बनाया है। लेकिन जैसे ही साफ होगा कि अजित पवार के साथ 30 या उससे ज्यादा विधायक गए हैं या पूरी एनसीपी ने आधिकारिक रूप से सरकार को समर्थन दिया है तो कांग्रेस पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी बन जाएगी। एनसीपी के 53 विधायक हैं, जिसमें से ज्यादा विधायकों के अजित पवार के साथ जाने की खबर है। ऐसा होता है तो 44 विधायकों वाली कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी होगी। कांग्रेस ने इसकी दावेदारी भी पेश कर दी है।