एनसीपी प्रमुख शरद पवार को लेकर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अंदर जिस चिंता या संदेह की बात की जा रही है वह सिर्फ कांग्रेस और शिव सेना के उद्धव ठाकरे को है क्योंकि इन्हीं दोनों को महाराष्ट्र में उनके साथ लड़ना है। बाकी पार्टियों को इससे फर्क नहीं पड़ता है कि शरद पवार की पार्टी सचमुच टूटी है या किसी योजना के तहत पवार चाचा-भतीजे कोई खेल कर रहे हैं। हालांकि विपक्षी गठबंधन की ज्यादातर पार्टियां मान रही हैं कि पवार की पार्टी टूटी नहीं है, बल्कि रणनीति के तहत उन्होंने खुद अपने नेताओं को भाजपा को साथ जाने दिया है। लेकिन इससे भी उनके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
परंतु कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट को चिंता है क्योंकि उनकी रणनीति बिगड़ रही है। अगले साल लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद राज्य में विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं, जो उद्धव ठाकरे के लिए जीवन-मरण वाले हैं। पार्टी टूटने के बाद यह पहला चुनाव होगा। उनकी पार्टी के नेताओं को लग रहा है कि शरद पवार दोहरा खेल कर रहे हैं। उधर से उनका भतीजा भाजपा की मदद से चुनाव लड़ेगा और इधर शरद पवार कांग्रेस और उद्धव गुट की मदद से लड़ेंगे। बाद में दोनों मिल कर बड़ी पार्टी हो सकते हैं। उससे पहले लोकसभा चुनाव में इन दोनों की इस रणनीति का फायदा भाजपा को हो सकता है। दोनों पार्टियों को लग रहा है कि इस तरह की राजनीति से नीचे कार्यकर्ताओं में विश्वास नहीं बन पा रहा है और न तालमेल बैठ रहा है। हर तरफ कंफ्यूजन है इसलिए उनका दबाव है कि पवार जल्दी से जल्दी स्थिति स्पष्ट करें। सिर्फ यह कहने से काम नहीं चलेगा कि पार्टी टूटी नहीं है। नहीं टूटी है तो पवार क्यों नहीं अजित के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं?