महाराष्ट्र में महायुति यानी भाजपा, शिव सेना और एनसीपी की सरकार बनने के बाद पहले दिन से खींचतान शुरू हो गई है, खत्म नहीं हो रही है। सरकार बनने यानी मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्रियों के शपथ लेने के 10 दिन बाद मंत्रिमंडल का गठन हुआ और उसके अगले दिन से नागपुर में विधानसभा का सत्र शुरू हुआ। सत्र के पहले तीन दिन उप मुख्यमंत्री अजित पवार लापता रहे। कहा गया कि वे दिल्ली के दौरे पर हैं। सवाल है कि मंत्रिमंडल के गठन के लिए तो वे कई दिन दिल्ली में थे और अब जबकि सत्र शुरू हो गया है तो वे दिल्ली का दौरा किसलिए कर रहे हैं? क्या विभागों के बंटवारे में कुछ गड़बड़ है, जिसके लिए वे भागदौड़ कर रहे हैं?
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इस बीच भाजपा ने विधान परिषद के सदस्य राम शिंदे को विधान परिषद के सभापति का उम्मीदवार बना दिया। शिव सेना के एकनाथ शिंदे को लग रहा था कि उनकी पार्टी की नीलम गोरे, जो विधान परिषद की उप सभापति हैं, उनको ही सभापति बना दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो वे राम शिंदे के नामांकन से नदारद रहे। सभापति का नामांकन सिर्फ भाजपा का कार्यक्रम बन कर रह गया।
एनसीपी के छगन भुजबल अलग नाराज हुए हैं और उन्होंने कहा कि उनको मंत्री नहीं बनाने का खामियाजा महायुति को भुगतना पड़ेगा। वे कह रहे हैं कि वे कोई खिलौना नहीं हैं। सबको पता है कि वे सबसे बड़े ओबीसी नेता हैं। इस तमाम घटनाक्रम के बीच यह भी चर्चा चल रही है कि शिव सेना और एनसीपी यानी एकनाथ शिंदे और अजित पवार की पार्टी से नाराज तमाम विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। सो, महाराष्ट्र की राजनीति दिलचस्प होती जा रही है।