कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अभी चार लोगों की एक टीम के साथ काम कर रहे हैं। राज्यसभा टीवी के पूर्व सीईओ गुरदीप सप्पल, राज्यसभा सांसद सैयद नासिर हुसैन, एआईसीसी की मीडिया टीम में सचिव रहे प्रणब झा और सोशल मीडिया टीम में रहे गौरव पांधी। ये चार लोग संगठन के कामकाज में खड़गे का हाथ बंटा रहे हैं। कर्नाटक के चुनाव में चारों नेता खड़गे के साथ राज्य में डटे रहे थे। खड़गे की चुनावी सभाओं, भाषणों और मीडिया में मौजूदगी के लिहाज से देखें तो टीम ने काफी अच्छा काम किया था। लेकिन ये चारों नेता ऐसे हैं, जो बैकग्राउंड में रह कर काम कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि खड़गे को एक मजबूत राजनीतिक सचिव की जरूरत है।
ध्यान रहे सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थीं तो पहले अंबिका सोनी और उसके बाद अहमद पटेल उनके राजनीतिक सचिव बने थे। बाद में अहमद पटेल ही कांग्रेस का सब कुछ संभालते थे। सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद से हटने के बाद पटेल भी अपने पद से हट गए थे लेकिन बाद में उनको कोषाध्यक्ष बनाया गया और वे पहले की तरह ही पार्टी का कामकाज देखते रहे थे। सोनिया व राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के बावजूद अहमद पटेल का अपना एक सत्ता केंद्र था, जहां से कांग्रेस संगठन और केंद्र व राज्यों की सरकारों का संचालन होता था। एक तरह से वह सबसे शक्तिशाली सत्ता केंद्र था।
अहमद पटेल जैसा तो नहीं, लेकिन उनसे मिलता जुलता एक मजबूत राजनीतिक सचिव मल्लिकार्जुन खड़गे को चाहिए। कांग्रेस के जानकार नेताओं का कहना है कि वे मन की मन ऐसे किसी नेता की तलाश कर रहे हैं लेकिन कोई ऐसा नेता मिल नहीं रहा है, जिसकी पूरे देश में पकड़ हो, लोग जानते हों, विपक्षी पार्टियों और कांग्रेस के सहयोगियों के साथ आसानी से तालमेल बैठा सकता हो और इसके बावजूद लो प्रोफाइल रख कर, परदे के पीछे से काम करे। ऐसे नेता के प्रति गांधी परिवार का सद्भाव भी जरूरी है। यानी ऐसे व्यक्ति, जिस पर गांधी परिवार को भी भरोसा हो।
ऐसा व्यक्ति न मिल रहा है और न नियुक्ति हो रही है। वैसे खड़गे के टीम भी अभी तक नहीं बनी है, जबकि वे नौ महीने पहले कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। वे अब भी सोनिया और राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते बनी टीम के साथ काम कर रहे हैं। उनके पास कांग्रेस कार्य समिति नहीं है और न उनकी बनाई स्टीयरिंग कमेटी की कोई बैठक हो रही है। उनके अध्यक्ष बनने के बाद जिस बड़े बदलाव की संभावना जताई गई थी वह पूरी नहीं हुई है। यथास्थिति कायम है और तदर्थ टीम के साथ कांग्रेस काम कर रही है। इसका नतीजा यह है कि ज्यादातर राज्यों में प्रदेश के नेता मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं।