पूर्वोत्तर में अशांति की खबरों के बीच कई राज्यों में भाजपा के अंदर की खींचतान सामने आ रही है। त्रिपुरा में भाजपा के लिए सब कुछ ठीक नहीं है। बिप्लब देब को हटा कर माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाने के बाद से ही पार्टी दो हिस्सों में बंटी है और अब वह विभाजन ज्यादा बढ़ गया है। भाजपा के पुराने नेता मुख्यमंत्री माणिक साहा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। ध्यान रहे वे कोई पांच-छह साल पहले ही कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे और आते ही राज्यसभा सांसद बन गए, प्रदेश अध्यक्ष बन गए और फिर मुख्यमंत्री बन गए। उनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने वाले बिप्लब देब और उनके समर्थकों की ओर से मुख्यमंत्री साहा पर दबाव बढ़ा है।
राज्य में दो सीटों के उपचुनाव होने वाले हैं और दोनों सीटों पर पार्टी ने मुख्यमंत्री साहा की पसंद को खारिज कर दिया है। बॉक्सानगर और धानपुर सीट पर मुख्यमंत्री की पसंद को खारिज करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक की पसंद के उम्मीदवार उतारे गए हैं। ध्यान रहे बॉक्सानगर सीट पर भौमिक खुद चुनाव लड़ी थीं और जीती थीं। तब कहा जा रहा था कि उनको मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन बाद में वे सांसद बनी रहीं और विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। सो, उनकी खाली की हुई सीट पर उनकी पसंद का उम्मीदवार देना जरूरी था लेकिन दूसरी सीट पर भी उनकी पसंद से उम्मीदवार दिया गया। इससे मुख्यमंत्री खेमे में निराशा है। ध्यान रहे भौमिक को बिप्लब देब खेमे का माना जाता है। अब बिप्लब और भौमिक खेमे की जिम्मेदारी है कि दोनों सीटों पर जीत दिलाएं। अगर भाजपा दोनों सीटों पर जीतती है तो मुख्यमंत्री के ऊपर और दबाव बनेगा। अगर एक भी सीट भाजपा हारती है तो उसका ठीकरा मुख्यमंत्री और उनके करीबी नेताओं पर फूटेगा। सो, दोनों तरह से मुख्यमंत्री माणिक साहा ही दबाव झेल रहे हैं।