Manmohan Singh Funeral Controversy: कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार और उनके स्मारक से जुड़े नियम बदले थे।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने 2013 में स्मारकों से जुड़े नियम बदले थे। ऐसा माना जाता है कि दिसंबर 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल के निधन और स्मृति स्थल पर उनके अंतिम संस्कार के बाद सरकार ने नियम बदलने की जरुरत समझी।
गुजराल का अंतिम संस्कार जवाहर लाल नेहरू की समाधि शांति वन और लाल बहादुर शास्त्री की समाधि विजय घाट के बीच स्मृति स्थल पर किया गया था।
इसके थोड़े दिन के बाद ही केंद्र सरकार ने तय किया कि पूर्व प्रधानमंत्रियों के अलग अलग स्मारक नहीं बनेंगे और एक जगह ही सबके स्मारक बनाए जाएंगे।
लेकिन अब कांग्रेस पार्टी इस बात की शिकायत कर रही है कि मनमोहन सिंह के लिए स्मारक की जगह नहीं दी जा रही है।
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हालांकि केंद्र सरकार ने कहा है कि वह जगह तलाश रही है। साथ ही एक ट्रस्ट भी बनाया जाएगा, जो स्मारक का काम देखेगा। लेकिन इसमें समय लगता है।
जब कांग्रेस से पूछा गया कि उसने स्मारक से जुड़े नियम बदले थे तो फिर मनमोहन सिंह के लिए अलग स्मारक की मांग क्यों कर रही है?
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने माना कि कांग्रेस सरकार ने स्मारक के नियम बदले थे लेकिन उसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद उस नियम का पालन नहीं किया।
सरकार ने उस नियम से अलग हट कर वाजपेयी का विशेष जगह पर अंतिम संस्कार किया और स्मारक बनवाया। इसलिए कांग्रेस चाहती है कि मनमोहन सिंह के लिए भी अलग स्मारक बनाया जाए।
सोचें, जब कांग्रेस नीतिगत रूप से इस बात पर सहमत थी कि सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के लिए अलग अलग स्मारक नहीं बनना चाहिए तो वह क्यों भाजपा की देखादेखी अलग स्मारक मांग रही है?
कांग्रेस की यह शिकायत जायज
फिर भी कांग्रेस की यह शिकायत जायज है कि मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर क्यों किया गया?
इससे पहले किसी पूर्व प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार सार्वजनिक शवदाह गृह में नहीं हुआ था। सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार या तो यमुना के किनारे हुआ या उनके गृह राज्य में विशेष आयोजन के साथ किसी न किसी नदी तट पर हुआ।
सार्वजनिक शवदाह गृह में अंतिम संस्कार की वजह से व्यवस्था में भी कई तरह की समस्याएं आईं, जिनकी शिकायत कांग्रेस ने की है।
कांग्रेस ने कहा है कि परिवार के लिए सिर्फ तीन कुर्सियां लगाई थीं। यह भी कहा गया है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को उनके प्रोटोकॉल के हिसाब से बैठने की जगह नहीं मिली।
मेहमानों को वहां तक पहुंचने में भी समस्या आई। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक निजी शिकायत यह की है कि वे तोपों की सलामी के समय कुर्सी पर बैठे रहे।
कांग्रेस नीतिगत स्टैंड पर कायम(Manmohan Singh Funeral Controversy)
हालांकि यह भी खबर आई है कि मनमोहन सिंह के परिवार की ओर से सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम उन लोगों की सूची में नहीं था, जिनको राजकीय समारोह शुरू होने से पहले पार्थिव शरीर पर फूल चढ़ाने की इजाजत मिलती है।
लेकिन प्रोटोकॉल तोड़ कर सरकार ने सोनिया और प्रियंका को इसका मौका दिया। मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल का नाम सूची में था क्योंकि वे संसद के दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्ष हैं।
बहरहाल, व्यवस्था को लेकर शिकायत अपनी जगह है लेकिन स्मारक के मामले में तो कांग्रेस को अपनी नीतिगत स्टैंड पर कायम रहना चाहिए।