क्या मराठा आरक्षण का आंदोलन शरद पवार का कोई दांव है? अभी तक भाजपा और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेता इसे डिकोड करने में लगे हैं। लेकिन उससे पहले भाजपा इस दांव में उलझ गई और निकलने की कोशिश में ज्यादा उलझती जा रही है। पहले मराठा आंदोलनकारियों पर पुलिस के लाठीचार्ज का विवाद हुआ, जिस पर उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को माफी मांगनी पड़ी। बाद में सरकार ने मराठा समुदाय को ओबीसी में शामिल करके उनको कुनबी जाति का दर्जा देने और आरक्षण देने का ऐलान किया। हालांकि इसके साथ यह शर्त लगा दी कि निजाम के समय यानी जब मराठवाड़ा का इलाका हैदराबाद का हिस्सा होता है उस समय का सर्टिफिकेट जिन लोगों के पास होगा उन्हीं को कुनबी का दर्जा मिलेगा।
इसके बाद मामला और उलझ गया है। मराठा समुदाय का बड़ा हिस्सा ऐसा है, जिसके पास निजाम के समय का सर्टिफिकेट नहीं है। सो, वे सर्टिफिकेट की शर्त हटाने की मांग कर रहे हैं तो दूसरी ओर बेहद ताकतवर मराठा समुदाय को ओबीसी में शामिल करने के विरोध में अलग आंदोलन की तैयारी हो रही है। ओबीसी समुदाय की जातियां इसका विरोध कर रही हैं। सरकार किसी तरह से आंदोलनकारियों को मान कर प्रदर्शन समाप्त कराने का प्रयास कर रही है। सर्वदलीय बैठक से भी बात नहीं बनी है। अब सरकार ने सभी प्रदर्शनकारियों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने का ऐलान किया है। इस बीच शरद पवार ने आरक्षण की सीमा 15 फीसदी बढ़ाने की मांग करके मामले को और उलझा दिया है। उनका फॉर्मूला है कि ओबीसी का आरक्षण कम कर मराठों को देने की बजाय 15 फीसदी सीमा बढ़ा कर उनको आरक्षण दिया जाए। मराठों को यह बात पसंद आ रही है। ध्यान रहे मराठा वोट के लिए ही भाजपा अजित पवार को इतना भाव दे रही है।