दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति में खाली हुई एक सीट पर चुनाव हुआ तो आम आदमी पार्टी ने उसका बहिष्कार कर दिया। आप ने पहले उम्मीदवार की घोषणा कर दी थी। लेकिन जब मतदान का समय आया तो वह पीछे हट गई और कांग्रेस के साथ उसने चुनाव का बहिष्कार कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा का उम्मीदवार एकतरफा वोटिंग में जीत गया। आम आदमी पार्टी की ओर से इसके लिए उप राज्यपाल और भाजपा को दोष दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि उप राज्यपाल ने लोकतंत्र का गला घोंट दिया क्योंकि चुनाव कराने का अधिकार मेयर का पास है। मेयर ने पांच अक्टूबर को चुनाव की तारीख रखी थी, जबकि उप राज्यपाल ने जोर जबरदस्ती 27 सितंबर को चुनाव करा दिया।
सवाल है कि चुनाव जैसे जब हुआ हो लेकिन अगर आम आदमी पार्टी के पास बहुमत है तो उसे चुनाव लड़ना चाहिए था। संख्या के हिसाब से देखें तो ढाई सौ सीटों वाले दिल्ली नगर निगम में अब भी 124 सीटों के साथ आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद भाजपा की 115 और कांग्रेस की नौ सीटें हैं। अगर कांग्रेस समर्थन नहीं देती और सदन का बहिष्कार करती तब भी आप के पास अपने 124 पार्षद हैं। फिर भी उसने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया तो इसका मतलब है कि उसे इन पार्षदों में से 10 से ज्यादा के क्रॉस वोटिंग करने का अंदेशा है। बताया जा रहा है कि तीन पार्षदों के पाला बदल कर भाजपा के साथ जाने के बाद आम आदमी पार्टी घबरा गई थी। वह नहीं चाहती थी कि चुनाव में वह एक्सपोज हो। अगर वह चुनाव लड़ती है और हार जाती तो ज्यादा किरकिरी होती। इसलिए उसने नियम का मुद्दा उठा कर चुनाव का बहिष्कार कर दिया। लेकिन मेयर का चुनाव तो कराना होगा और उसमें भी उसे ऐसी ही समस्या का सामना करना पड़ेगा।