बिहार में विधान परिषद यानी एमएलसी की एक सीट पर उपचुनाव हो रहा है। तिरहुत स्नात्तक क्षेत्र की सीट खाली हुई है क्योंकि इस सीट से लगातार जीत रहे देवेश चंद्र ठाकुर इस बार सीतामढ़ी सीट से लोकसभा का चुनाव जीत गए हैं। उनकी खाली की हुई सीट पर एनडीए, ‘इंडिया’ ब्लॉक, जनसुराज सहित पांच उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है। मतदान से ठीक पहले मतदाता सूची को लेकर ऐसी खबर आई है, जिससे पता चलता है कि इस तरह के तमाम चुनाव किस तरह से मजाक बन गए हैं। तिरहूत स्नात्तक क्षेत्र के तहत आने वाले मुजफ्फपुर जिले के औराई प्रखंड में सात सौ से कुछ ज्यादा मतदाताओं के बीच 138 मतदाता ऐसे हैं, जिनके पिता का नाम मुन्ना कुमार है। ध्यान रहे स्नात्तक क्षेत्र के चुनाव में संभावित उम्मीदवार अपने अपने हिसाब से मतदाता बनवाते हैं। सो, किसी ने एक जगह बैठ कर रामलाल, श्यामलाल को मतदाता बनाया और सबके पिता का नाम मुन्ना कुमार रख दिया।
चुनाव अधिकारी का कहना है कि अभी तुरंत तो इसमें सुधार नहीं किया जा सकता है क्योंकि पांच दिसंबर को मतदान है। लेकिन ऐसा करने वालों पर कार्रवाई होगी। सोचें, क्या इसी तरह से हर प्रखंड या जिले में फर्जी मतदाता नहीं बनाए गए होंगे? इससे पूरे चुनाव की शुचिता पर सवाल उठता है। लेकिन यह सिर्फ स्नात्तक क्षेत्र के चुनाव का मामला नहीं है। इसी तरह स्थानीय प्राधिकार यानी स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों के वोट से भी कुछ एमएलसी चुने जाते हैं। उसमें मतदाता सूची का फर्जीवाड़ा नहीं होता है। उसमें सीधे प्रतिनिधियों को पैसे देकर उनके वोट खरीदे जाते हैं। ऐसे ही राज्यपाल के मनोनयन कोटे से कुछ सीटें भरी जाती हैं। उसमें यह कहा गया है कि साहित्य, कला, समाजसेवा जैसे क्षेत्रों में विशिष्ट स्थान रखने वालों को मनोनीत किया जाएगा। लेकिन शायद ही कभी ऐसा कोई व्यक्ति उसमें मनोनीत होता है। सत्तारूढ़ दल या गठबंधन अपनी पार्टी के हारे हुए या चुनाव नहीं लड़ने वाले नेताओं को उसमें मनोनीत करता है या पैसे लेकर धनपतियों को उच्च सदन में भेजता है। इस तमाशे को बंद करने का तरीका यह है कि विधान परिषद को समाप्त कर दिया जाए।