विपक्षी पार्टियां वैसे बहुत भरोसे में नहीं हैं कि वे दिल्ली पर लाए गए केंद्र के अध्यादेश को कानून बनने से रोक देंगे। लेकिन अब उनकी चिंता बढ़ती जा रही है। आम आदमी पार्टी के उच्च सदन के नेता संजय सिंह को पूरे सत्र के लिए अयोग्य ठहराने के सभापति के फैसले से विपक्षी पार्टियों की चिंता बढ़ी है। ध्यान रहे कांग्रेस की सांसद रजनी पाटिल के निलंबन का मामला अभी तक सुलझा नहीं है। उनको बजट सत्र में सदन की कार्यवाही का वीडियो बनाने और उसे जारी करने के आरोप में पूरे सत्र के लिए निलंबित किया गया था लेकिन बाद में कहा गया था कि इसे मानसून सत्र में भी जारी रखा जा सकता है क्योंकि इसकी जांच के लिए बनी विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट नहीं मिली है।
इस तरह से विपक्ष के दो महत्वपूर्ण सांसद अगर सदन से निलंबित रहते हैं तो इससे विपक्ष का हिसाब गड़बड़ाएगा। विपक्षी पार्टियां पहले से ही संख्या में कमजोर दिख रही हैं। मायावती की पार्टी का राज्यसभा में एक ही सांसद है और उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी अध्यादेश के मसले पर बहस और वोटिंग से अलग रहेगी। विपक्ष की एक महत्वपूर्ण पार्टी एनसीपी है। उसके राज्यसभा सांसद प्रफुल्ल पटेल कुछ दिन पहले ही अजित पवार गुट के साथ चले गए, जिसने भाजपा से गठबंधन कर लिया है। सो, किसी न किसी तरह से विपक्षी पार्टियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।
विपक्ष को यह चिंता भी है कि अगर उच्च सदन में हंगामा चलता रहा तो कुछ और सांसदों को निलंबित किया जा सकता है। इसके अलावा एक चिंता ध्वनि मत से और हाथ उठा कर बिल पास कराने का भी है। हालांकि किसी भी सदस्य की ओर से वोटिंग की मांग करने के बाद डिवीजन अनिवार्य होता है लेकिन कृषि कानूनों के मामले में ऐसा नहीं किया गया था। हंगामे का बहाना बना कर उस नियम को स्थगित कर दिया गया था और फिर तीनों कानूनों को मंजूरी दे दी गई थी। सोमवार को संजय सिंह को निलंबित करने के मामले में भी ऐसा ही हुआ। उनके निलंबन का प्रस्ताव रखा गया और ध्वनि मत से उसे मंजूर कर लिया गया, जबकि उस समय विपक्षी पार्टियों की आवाज ज्यादा बुलंद थी।