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सरकार और विपक्ष दोनों की परेशानी

संसद का मॉनसून सत्र सरकार और विपक्ष दोनों के लिए परेशानी वाला हो सकता है। 20 जुलाई से शुरू हो रहे सत्र में तीन मुख्य मुद्दे हो सकते हैं। पहला मुद्दा तो स्वाभाविक रूप से दिल्ली सरकार को लेकर जारी केंद्र का अध्यादेश का हो सकता है। सरकार इसे कानून बनाने के लिए विधेयक ला सकती है। दूसरा मुद्दा मणिपुर में चल रही अशांति और हिंसा का है। इसके अलावा तीसरा मुद्दा समान नागरिक संहिता का हो सकता है। सरकार इसे लेकर जितनी तेजी से पहल कर रही है उसे देखते हुए लगता है कि इसी सत्र में इसका विधेयक आ सकता है। इन तीनों मुद्दों पर सरकार और विपक्ष दोनों को संतुलन बनाने में दिक्कत होगी।

सबसे पहले नागरिक संहिता की बात करें। अगर यह बिल आता है तो सरकार की पहली कोशिश सहमति बनाने की होगी। लेकिन आम सहमति मुश्किल है और ऐसा कांग्रेस या दूसरी विपक्षी पार्टियों की वजह से नहीं होगा, बल्कि सत्तापक्ष यानी एनडीए के घटक दलों की वजह से होगा। पंजाब में एनडीए की पुरानी सहयोगी अकाली दल ने इसका विरोध किया है। अकाली दल के साथ भाजपा की फिर से बातचीत चल रही है। उसका कहना है कि समान नागरिक संहिता सिखों के हितों को नुकसान पहुंचाएगा। इसी तरह मेघालय में सरकार चला रही भाजपा की सहयोगी एनपीपी ने भी इसका विरोध किया है और इसे पूर्वोत्तर की संस्कृति के खिलाफ बताया है। एनपीपी के साथ साथ पूर्वोत्तर में भाजपा की दूसरी सहयोगी पार्टियां भी इसका विरोध कर सकती हैं।

इसी तरह दिल्ली के अधिकारियों पर नियंत्रण के लिए लाए गए अध्यादेश के मसले पर कांग्रेस पार्टी की दुविधा है। कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा कि वह इस मसले पर आम आदमी पार्टी के साथ खड़ी हो। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी सहित तमाम विपक्षी पार्टियां चाहेंगी कि कांग्रेस इस मामले में उनके साथ खड़ी हो और विधेयक का विरोध करे। कांग्रेस अगर खुल कर विरोध नहीं करती है और बिल के खिलाफ वोटिंग नहीं करती है तो विपक्षी गठबंधन को झटका लग सकता है। सो, कांग्रेस को बीच का रास्ता निकालना होगा।

मणिपुर के मसले पर केंद्र सरकार घिरेगी। अगर सत्र से पहले सरकार कुछ कंट्रोल कर लेती है और हिंसा थम जाती है तब तो ठीक है अन्यथा इस मसले पर सरकार को जवाब देना भारी होगा। तभी ऐसा लग रहा है कि सरकार मणिपुर में हिंसा पर नियंत्रण के लिए नई पहल कर रही है। असम के मुख्यमंत्री और पूर्वोत्तर में एनडीए का काम देख रहे हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि सात से 10 दिन में मणिपुर में हिंसा थम जाएगी। अगर 10 दिन में हिंसा थम जाती है तब 20 जुलाई से शुरू हो रहे सत्र में विपक्ष इसका मुद्दा नहीं बना सकेगा। हालांकि तब भी प्रधानमंत्री मोदी के मणिपुर नहीं जाने का मुद्दा होगा लेकिन शांति बहाली के बाद यह मुद्दा भी कमजोर पड़ जाएगा। ध्यान रहे अगले 15 दिन में प्रधानमंत्री मोदी शायद ही मणिपुर जाएं क्योंकि अगर ने मणिपुर गए तो कांग्रेस दावा करेगी कि राहुल गांधी पहले गए इसलिए मोदी भी मणिपुर गए।

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