बेंगलुरू में विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे पर बातचीत नहीं की और न दिल्ली में एनडीए के नेताओं ने इस पर चर्चा की। हकीकत यह है कि अभी दोनों में से कोई गठबंधन सीट बंटवारे के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता है। ‘इंडिया’ और एनडीए दोनों को पता है कि यह आसान काम नहीं है। अगर एनडीए की बैठक को ही लें तो चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों बैठक में शामिल हुए और चिराग ने खुलेआम ऐलान किया कि वे हाजीपुर लोकसभा सीट लड़ेंगे, जहां से पारस अभी सांसद हैं और केंद्र सरकार में मंत्री हैं। अगर दोनों को साथ रखना है तो समझाना मुश्किल होगा।
एनडीए में शामिल पार्टियों ने अभी से सीटों की मांग बढ़ा-चढ़ा कर शुरू कर दी है। चिराग पासवान छह लोकसभा और एक राज्यसभा सीट मांग रहे हैं तो पशुपति पारस को भी अपने पांच सांसदों के लिए सीट चाहिए। उपेंद्र कुशवाहा को कम से कम दो लोकसभा सीट चाहिए और जीतनराम मांझी को भी दो सीट चाहिए। अगर मुकेश सहनी एलायंस में शामिल होते हैं तो उनको भी दो सीट चाहिए। इस तरह सहयोगियों की मांग 17 सीट की होगी, जबकि भाजपा ने बिहार की 40 में से 30 सीट लड़ने का फैसला किया है। उत्तर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल को दो सीट मिलती है और संजय निषाद को एक लेकिन ओमप्रकाश राजभर को तीन सीट चाहिए। हरियाणा में दुष्यंत चौटाला को दो सीट चाहिए, जबकि भाजपा ज्यादा से ज्यादा एक दे सकती है और वह भी हिसार की सीट नहीं होगी।
महाराष्ट्र में दोनों गठबंधन के लिए सीट बांटना मुश्किल है। क्योंकि शिव सेना और एनसीपी का एक-एक खेमा भाजपा और कांग्रेस के साथ है। एकनाथ शिंदे और अजित पवार शिव सेना और एनसीपी के कोटे की सीटें भाजपा से मांग रहे हैं तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार कांग्रेस से मांग रहे हैं। बिहार में पिछले चुनाव में राजद और कांग्रेस के गठबंधन में जेडीयू नहीं थी। इस बार उसके आने से दोनों का समीकरण बिगड़ा है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कैसे सीटों का बंटवारा होगा, यह भी बड़ा पेंच हैं। बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट को तृणमूल से अलग लड़ना है इसलिए वहां सीट का बंटवारा नहीं होना है पर गठबंधन के नेता अभी इसका खुलासा नहीं करना चाहते हैं।