भारतीय जनता पार्टी बिहार में सत्ता का टेकओवर करने को तैयार है लेकिन वह नहीं चाहती है कि इस मामले में कोई जोर जबरदस्ती हो। हालांकि नीतीश कुमार की अभी जैसी स्थिति है उसमें भाजपा के लिए बहुत आसान है कि वह उनकी पार्टी तोड़ कर अपनी सरकार बना ले। जानकार सूत्रों का कहना है कि जदयू के 12 लोकसभा सांसदों में से एकाध को अपवाद के लिए छोड़ कर बाकी सभी भाजपा के साथ हैं और चारों राज्यसभा सांसद भी पूरी तरह से भाजपा के साथ हैं। नीतीश कुमार के 45 विधायकों में से 30 से ज्यादा भाजपा के पक्ष में चले जाएंगे। भाजपा के पास अपने 85 विधायक हैं और जीतन राम मांझी के चार विधायक हैं। नीतीश की पार्टी तोड़ कर भाजपा आराम से अपना मुख्यमंत्री बना सकती है। लेकिन भाजपा जोखिम नहीं लेना चाहती है क्योंकि उसको पता है कि इसी साल चुनाव है और उसमें इसका प्रभाव अच्छा नहीं होगा। भाजपा नीतीश के बगैर चुनाव लड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकती है।
भाजपा को पता है कि नीतीश की स्थिति ठीक नहीं है लेकिन यह भी पता है कि वे अगर थोड़ी देर भी राजनीति कर देंगे तो भाजपा का खेल बिगाड़ देंगे। अगर भाजपा ने उनकी पार्टी तोड़ी तो वे बचे हुए विधायकों और बचे हुए वोट आधार के साथ अगले चुनाव में राजद का समर्थन कर सकते हैं। राजद के तेजस्वी यादव पिछले 10 साल में नीतीश के विकल्प के तौर पर स्थापित हैं और अगर नीतीश उनको समर्थन देते हैं तो उनकी जीत में कोई संदेह नहीं रह जाएगा। तभी भाजपा के नेता जोखिम लेने की बजाय नीतीश के स्वेच्छा से रिटायर होने का इंतजार और बंदोबस्त कर रहे हैं। मुश्किल यह है कि नीतीश को हैंडल करने वाले सभी करीबी भले भाजपा के असर में या दबाव में हों लेकिन उनका अपना स्वार्थ नीतीश से जुड़ा है। अगर भाजपा का मुख्यमंत्री बन जाता है तो सबकी दुकान बंद हो जाएगी। इसलिए भाजपा के दबाव के बावजूद वे नीतीश को रिटायर नहीं होने दे रहे हैं। वे इस प्रयास में भी हैं कि भाजपा से तालमेल में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जाएं ताकि चुनाव के बाद भी जदयू की मजबूत स्थिति बनी रहे। मुश्किल यह है कि नीतीश अगर इसी तरह पद पर बने रहते हैं तब भी एनडीए की संभावना को नुकसान हो रहा है। उनके मानसिक रूप से सक्षम नहीं होने के मैसेज का भी फायदा तेजस्वी यादव को हो सकता है। तभी यह देखना होगा कि भाजपा कब तक इंतजार करती है।