भारत के संविधान में महाभियोग के जरिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने का प्रावधान है। लेकिन आज तक कोई जज महाभियोग के कारण नहीं हटाया गया है। हालांकि चार जजों पर संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन अंजाम तक नहीं पहुंची। अब जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में भी इस विकल्प पर विचार हो रहा है।
लेकिन मुश्किल यह है कि उनके सरकारी आवास से कथित तौर पर करोड़ों रुपए की नकदी बरामद हुए दो महीने से ज्यादा हो गए लेकिन अभी तक किसी पार्टी ने उनके खिलाफ महाभियोग की पहल नहीं की है। कांग्रेस पार्टी के नेता सरकार से उनके मामले का स्टैटस पूछ रहे हैं लेकिन अपनी ओर से कोई पहल नहीं कर रहे हैं। जस्टिस वर्मा उत्तर प्रदेश के हैं, जहां का मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी के पास लोकसभा में 37 सांसद हैं लेकिन उसने भी कोई पहल नहीं की है। क्या प्रदेश की राजनीति इसके आड़े आ रही है?
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महाभियोग: इतिहास और सन्नाटा
बहरहाल, इससे पहले भारत की संसद में चार जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन कोई अंजाम तक नहीं पहुंची। सबसे ताजा मामला जस्टिस जेबी पारदीवाला का है। जब वे गुजरात हाई कोर्ट में जज थे तब उनके ऊपर अनुसूचित जाति व जनजाति के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की मामला आया था और तब कांग्रेस ने महाभियोग की पहल की थी। लेकिन तत्कालीन उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी के पास यह नोटिस पहुंचा तो जस्टिस पारदीवाला ने अपने जजमेंट से वह टिप्पणी हटा दी।
उससे पहले कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन संसद में इस पर चर्चा होती उससे पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया। ऐसे ही सिक्किम हाई कोर्ट के जज जस्टिस पीडी दिनाकरण के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी और उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया था।
सबसे पहले जज जस्टिस वी रामास्वामी थे, जिनके ऊपर 1993 में महाभियोग चलाया गया था। उनके महाभियोग पर चर्चा भी हुई थी लेकिन वोटिंग के दौरान महाभियोग प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिल पाया और प्रस्ताव विफल हो गया।