इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ज्यादा लोकसभा स्पीकर ओम बिरला विपक्ष के निशाने पर हैं। ओम बिरला उन गिने चुने अध्यक्षों में से हैं, जिन्हें लगातार दो कार्यकाल मिला। लेकिन दूसरे कार्यकाल की शुरुआत अच्छी नहीं रही। ऐसा लग रहा कि विपक्ष ने पहले से तैयारी की हुई थी कि वह ओम बिरला को निशाना बनाएगा। यह हैरान करने वाली बात है कि ओम बिरला भी बदले हुए दिखे और ऐसा लग रहा है कि विपक्ष की रणनीति को भांप कर उन्होंने यह रुख अख्तियार किय। असल में लोकसभा में पिछली बार के मुकाबले इस बार विपक्षी सांसदों की संख्या बहुत ज्यादा है। तभी यह पहले दिन से लग रहा था कि विपक्ष इस ताकत का प्रदर्शन करेगा। इसलिए स्पीकर ने भी पहले दिन से सख्त रुख अख्तियार किया।
स्पीकर ओम बिरला का रुख का दिख रहा है, जैसा राज्यसभा में सभापति जगदीप धनकड़ का है। जिस तरह वहां विपक्ष मजबूत था उसी तरह अब लोकसभा में भी मजबूत है। तभी स्पीकर ने सख्त रुख अख्तियार किया, जिससे टकराव बढ़ा। विपक्ष के सांसदों ने पिछले सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए स्पीकर के ऊपर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तंज किया। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने तो यहां तक कहा कि स्पीकर ने जब उनसे हाथ मिलाया तो सीधे खड़े रहे, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने झुक कर उनसे हाथ मिलाया। उसी दिन तय हो गया था कि विपक्ष स्पीकर के साथ क्या बरताव करने वाला है। इसकी एक मिसाल बुधवार को लोकसभा में देखने को मिली, जब तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने स्पीकर पर पक्षपात का आरोप लगाया और चेतावनी के अंदाज में कहा कि सदन में पक्षपात नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि वे आठ साल पहले की नोटबंदी का जिक्र कर रहे हैं तो वह स्पीकर को चुभ रहा है लेकिन भाजपा के सांसद 60 साल पहले के नेहरू और 50 साल पहले की इमरजेंसी का मुद्दा उठा रहे हैं तो वे चुप रह जा रहे हैं। यह स्पीकर से सीधे टकराव का एक नमूना है।