पटना में 23 जून को होने वाली बैठक में क्या कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का झगड़ा सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा? बैठक की तैयारियों से जुड़े बिहार के एक जानकार नेता ने कहा है कि किसी भी हाल में अरविंद केजरीवाल को बैठक का एजेंडा हाईजैक करने नहीं दिया जाएगा। केजरीवाल चाहते हैं कि दिल्ली सरकार के मामले में लाए गए केंद्र के अध्यादेश पर चर्चा हो और कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी के तालमेल के मुद्दे पर विचार हो। ध्यान रहे पहले केजरीवाल की सरकार के मंत्री और उनकी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रहे सौरभ भारद्वाज ने कहा कि कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में चुनाव नहीं लड़े तो आम आदमी पार्टी भी राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ने नहीं जाएगी। इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी 23 जून से पहले अध्यादेश के मसले पर अपना रुख स्पष्ट करे। उनकी कोशिश है कि पटना की बैठक में इन दोनों मुद्दों को हाईलाइट किया जाएगा।
कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां इस मुद्दे को ज्यादा हाईलाइट नहीं होने देंगी। दूसरी विपक्षी पार्टियां भी नहीं चाहती हैं कि कांग्रेस और आप के राजनीतिक विवाद की छाया विपक्षी गठबंधन के ऊपर पड़े। तभी पहले ही कहा जाने लगा है कि विपक्षी पार्टियों के राष्ट्रीय गठबंधन की एक रूप-रेखा तय होगी यानी पूरे देश के स्तर पर विपक्ष एकजुट होगा लेकिन सीटों के गठबंधन का फैसला राज्यवार होगा। यानी इसके बाद में राज्यवार चर्चा होगी और उसमें तय होगा कि किस राज्य में किन पार्टियों का गठबंधन होगा और कौन सी पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सो, अगर केजरीवाल पटना की बैठक में यह दबाव डालते हैं कि कांग्रेस को उनके साथ तालमेल करने के लिए मजबूर किया जाए या अध्यादेश का विरोध करने के मामले पर कांग्रेस से कुछ वादा कराया जाए तो वह नहीं होने वाला है। तभी कांग्रेस के एक नेता ने कहा है कि पटना की बैठक विपक्षी गठबंधन में केजरीवाल की आखिरी बैठक हो सकती है। इसके बाद वे ऐसी बैठकों से दूरी बना सकते हैं। जो भी हो 23 जून की बैठक में सबसे ज्यादा दिलचस्पी कांग्रेस और आप के समीकरण को लेकर ही है बाकी पार्टियों का हिसाब किताब तो काफी हद तक साफ है।