लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच साझा हितों को ध्यान में रखते हुए एक स्थायी संबंध बन गया है। तभी यह नारा खूब चला कि ‘यूपी को ये साथ पसंद है’। सवाल है कि जब यूपी को दोनों पार्टियों का साथ पसंद है तो फिर अब क्या हो गया, जो दोनों साथ नहीं दिखना चाहते हैं? क्यों समाजवादी पार्टी ने खुल कर कांग्रेस को निशाना बनाना शुरू कर दिया। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने कांग्रेस को डिसमिस करने के अंदाज में कहा है कि कांग्रेस तो हारती रहती है। Rahul Gandhi Akhilesh Yadav
समाजवादी पार्टी के एक अन्य नेता उदयवीर सिंह ने भी कांग्रेस को खारिज करते हुए कहा कि सपा को ममता बनर्जी को ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेता मानने में दिक्कत नहीं है। मुंबई में सपा नेता अबू आजमी ने कहा कि समाजवादी पार्टी को क्यों कांग्रेस के साथ रहना चाहिए, अगर वह उद्धव ठाकरे की शिव सेना के साथ संबंध रखती है?
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सवाल है कि ऐसा क्या होगा कि अचानक सपा के नेता कांग्रेस से खफा हो गए? एक कारण तो उद्धव ठाकरे की पार्टी द्वारा बाबरी विध्वंस में शामिल लोगों की तारीफ करने का विज्ञापन देना है। दूसरा कारण यह है कि अखिलेश यादव के कहने के बावजूद कांग्रेस ने सपा के अवधेश प्रसाद की सीट बदल दी। लोकसभा स्पीकर की ओर से विपक्ष को अगली कतार में सात सीटें दी गईं, जिनमें से चार सीटें तो कांग्रेस ने खुद रखी और सपा को एक सीट दी, अखिलेश यादव के लिए। लेकिन उन्हें भी राहुल की सीट से दूर कर दिया। अखिलेश अयोध्या धाम के क्षेत्र में भाजपा को हराने वाले अपने दलित सांसद को अगली सीट पर अपने साथ बैठाना चाहते थे। Rahul Gandhi Akhilesh Yadav
कांग्रेस ने वह नहीं होने दिया। ऊपर से कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र राजनीति शुरू कर दी। प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने धर्मस्थल कानून, 1991 को लागू करने के लिए पूरे राज्य में यात्रा की योजना बना ली। तीसरे, जिस दिन संभल पर अखिलेश यादव को लोकसभा में बोलना था उसी दिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने संभल की यात्रा का कार्यक्रम बना दिया। ऐसा लग रहा है कि सपा को कांग्रेस की स्वतंत्र राजनीति पसंद नहीं आ रही है। सपा चाहती तो है कि यूपी में कांग्रेस से तालमेल रहे लेकिन साथ ही यह भी चाहती है कि कांग्रेस पिछलग्गू बन कर रहे।