इस बार संसद की तस्वीर कई मायने में बदली हुई है। ओडिशा में लगातार 24 साल तक राज करने के बाद सत्ता से बाहर हुई नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल का इस बार लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है। पार्टी के गठन के बाद से यह पहला मौका है, जब निचले सदन में उसका कोई सदस्य नहीं है। लेकिन राज्यसभा में बीजू जनता दल यानी बीजद के नौ सांसद हैं। अब तक बीजद का रवैया भाजपा के साथ समर्थन का रहा है। पिछले 10 साल के नरेंद्र मोदी के शासन में पार्टी ने हर मसले पर सरकार का समर्थन किया। लेकिन इस बार ओडिशा की हार ने सब कुछ बदल दिया है। अब बीजू जनता दल केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ नहीं है, बल्कि विपक्ष के साथ है।
संसद के छोटे से सत्र में दो बार ऐसा हुआ, जब बीजू जनता दल ने सदन से वॉकआउट किया। दोनों बार उसने विपक्ष का साथ दिया। बुधवार, तीन जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब दे रहे थे तब विपक्षी पार्टियों ने उसका बहिष्कार किया। मोदी का भाषण शुरू होने के आधे घंटे बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने वॉकआउट किया तो बीजू जनता दल के सभी सांसद भी बाहर चले गए। पहली बार बीजद ने प्रधानमंत्री का बहिष्कार किया। इससे पहले 28 जून को जब नीट और नेट की परीक्षा के पेपर लीक व दूसरी गड़बड़ियों को लेकर विपक्षी पार्टियों ने प्रदर्शन किया तब भी बीजद ने उनके साथ सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया था। बीजद के रुख में आए इस बदलाव के बारे में पार्टी के नेता सस्मित पात्रा का कहना है कि उनकी पार्टी ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही है, जो कि केंद्र सरकार नहीं दे रही है इसलिए विरोध किया जा रहा है। लेकिन असली कारण ओडिशा में भाजपा के हाथों मिली करारी हार है।