Gadkari ministry: सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी की सरकार का सबसे काबिल और सबसे सक्षम मंत्री माना जाता है।
देश का आम आदमी भी मानता है कि रोड मंत्रालय में बड़ा काम हुआ है। ऐसा मानने का कारण यह भी है कि चारों तरफ नई सड़कों का जाल बिछता दिख रहा है।
हालांकि उसके साथ ही गडकरी को लेकर एक धारणा यह भी बनी है या बनाई गई है कि वे सड़क मंत्रालय में बैठे ही इसलिए हैं ताकि टोल टैक्स वसूल सकें।
जैसे निर्मला सीतारमण तरह तरह के जीएसटी की वजह से बदनाम या मजाक का विषय हैं वैसे गडकरी टोल टैक्स को लेकर है। सोशल मीडिया में मोदी सरकार के इन दो मंत्रियों को लेकर सबसे ज्यादा मीम्स बनते हैं।
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बहरहाल, अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा की है। इसको लेकर जो रिपोर्ट आ रही है उससे लग रहा है कि पिछले 10 साल से चल रही नीतियों में कुछ बड़े बदलाव होने वाले हैं।
बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने मंत्रालय के कामकाज से नाराजगी जताई है और कई नीतियों की आलोचना की है।
हालांकि यह नहीं बताया गया है कि समीक्षा बैठक में मंत्री नितिन गडकरी मौजूद थे या नहीं। एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री ने सड़कों, फ्लाईओवर, अंडरपास आदि की क्वालिटी को लेकर अप्रसन्नता जाहिर की है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में कई बड़ी महत्वाकांक्षी सड़क परियोजनाओं में गड़बड़ी की खबरें आईं। सड़क टूटने या उखड़ने की खबरों के साथ साथ बताया गया कि प्रधानमंत्री ने एक साल पहले या छह महीने पहले ही इसका उद्घाटन किया था। इस तरह की खबरों के प्रधानमंत्री नाखुश हैं।
काम की क्वालिटी खराब
तभी बताया जा रहा है कि उन्होंने लोएस्ट बीडर यानी सबसे कम बोली लगाने वाले को ठेका देने के नियम पर विचार करने को कहा है।
बताया जा रहा है कि उन्होंने कहा कि कंपनियां 30 फीसदी तक कम रेट पर काम ले रही हैं तो जाहिर है कि काम की क्वालिटी खराब होगी।
इससे ऐसा लग रहा है कि अब एक सीमा से ज्यादा नीचे रेट पर काम नहीं देने की नीति आ सकती है। माना जा रहा है कि सरकार कम पैसे में काम कराने की बजाय बेहतर काम कराने की नीति पर चलेगी।
काम की क्वालिटी को लेकर प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि सब कॉन्ट्रैक्टर को काम देने वाली नीति बंद होनी चाहिए।
अभी कंपनियां बोली जीत कर काम हासिल करने के बाद छोटी छोटी कंपनियों में उसको बांट देती हैं। इससे गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं हो पाती है। सो, हो सकता है कि सब कॉन्ट्रैक्ट का क्लॉज अब हटा दिया जाए।
समीक्षा बैठक की एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अहम और बड़ी बात यह कही कि काम के बड़े पैकेज को टुकड़ों में बांटने की जरुरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि चार हजार करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है तो उसे वैसे ही रहने दिया जाए टुकड़े करके एक एक हजार के प्रोजेक्ट बनाने की जरुरत नहीं है।
अगर ऐसा होता है तो इसका मतलब होगा कि बड़े ठेके सिर्फ बहुत बड़ी कंपनियों को ही मिलेंगे। ज्यादा बड़े ठेके के लिए क्वालिफाई करने वाली कंपनियों की संख्या भारत में बहुत सीमित है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री नीतियों में इन बदलावों को गडकरी से ही लागू कराते हैं या कोई और उपाय किया जाता है।