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नेताओं की लड़ाई सोशल मीडिया में

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राजनीति में सोशल मीडिया के इस्तेमाल की नई नई कहानियां सामने आ रही हैं। ताजा कहानी यह है कि नेताओं ने अपने अपने वीर बालकों से यूट्यूब चैनल्स बनवा दिए हैं और उनके चैनल्स के फेसबुक व एक्स अकाउंट भी बन गए हैं। इन चैनलों पर बाकी खबरें वगैरह तो चलती ही है साथ ही संबंधित नेता के विरोधियों के खिलाफ अभियान भी चलता है। इस काम में कई पुराने और रिटायर पत्रकार भी शामिल हैं तो कई उभरते हुए पत्रकार भी शामिल हैं, जिनको मुख्यधारा की मीडिया में जगह नहीं मिली। कई प्लेटफॉर्म तो वैचारिक आधार पर भी इधर या उधर की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन कई प्लेटफॉर्म्स का काम संबंधित नेता की जयकार करना और उसके विरोधियों को निशाना बनाना होता है।

अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश को लेकर ऐसी कई कहानियां सामने आईं। एक पुराने पत्रकार के चैनल से राज्य के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को खूब खरी खोटी सुनाई गई। उनका कसूर यह बताया गया कि उन्होंने हरियाणा में भाजपा की जीत का श्रेय योगी आदित्यनाथ को नहीं दिया, बल्कि यह कह दिया कि मोदी के नेतृत्व में हम लोगों को जो जिम्मेदारी दी गई थी वह सफल रही। इस गुनाहे अजीम के लिए पत्रकार महोदय ने ब्रजेश पाठक को ‘आस्तीन का सांप’, ‘बीजेपी का दुश्मन’ और ‘अपने दम पर एक ग्राम प्रधान का चुनाव नहीं जीत सकने वाला’ कहा गया। लोग इस प्रसंग में ‘थ्री ईडियट्स’ फिल्म के एक दृश्य की मिसाल देकर बता रहे हैं कि बोल भले पत्रकार रहे हैं लेकिन शब्द किसी और के हैं। बहरहाल, ऐसे अनेक प्लेटफॉर्म हैं, जिन्हें किसी न किसी नेता के वीर बालक चला रहे हैं। गौरतलब है कि ‘साहित्य में वीर बालकवाद’ की अवधारणा के प्रतिपादक मनोहर श्याम जोशी ने कहा था कि वीर बालकों का काम अपने गुरू की वाह वाही करना और गुरू के दुश्मनों को बदनाम करने का होता है। यह काम करने के लिए अब यूट्यूब चैनल्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स उपलब्ध हैं।

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