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लोहिया, जेपी के बाद अंबेडकर प्रेम

Ambedkar Lohia and JP

Ambedkar Lohia and JP: समाजवादी नेताओं ने अब अपने विचारकों का नाम लेना बंद कर दिया है। अब कही भी लालू प्रसाद या उनके परिवार के लोग और अखिलेश यादव आदि राम मनोहर लोहिया का जयप्रकाश नारायण का नाम नहीं लेते हैं।

एक समय था, जब मुलायम सिंह अपने को लोहिया का शिष्य करते थे। नई दिल्ली के राजेंद्र प्रसाद रोड पर समाजवादी पार्टी के सांसद जनेश्वर मिश्र का बंगला था तो उस पर बाहर बड़ा बोर्ड लगा हुआ था, लोहिया के लोग। लेकिन अब कोई नामलेवा नहीं है।

लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जयप्रकाश नारायण यानी जेपी के चेले कहे जाते थे लेकिन अब जेपी का भी कोई नामलेवा नहीं है।

हालांकि पिछले साल 11 अक्टूबर को उनकी जयंती पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उनकी मूर्ति पर माला चढ़ाने जाना चाहते थे लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उनको वहां जाने ही नहीं दिया।

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सोचें, पहले भारतीय जनसंघ और बाद में भाजपा के नेता भी लोहिया और जेपी के बड़े शुक्रगुजार होते थे क्योंकि मुख्यधारा की राजनीति में दक्षिणपंथी विचार के स्थापित होने और मजबूत होने में कहीं न कहीं इन दोनों नेताओं की भूमिका मानी जाती थी।

परंतु अब लोहिया और जेपी को राजनीतिक विमर्श से हटा दिया गया है क्योंकि राजनीति में अब विचारधारा के लिए जगह नहीं बची है और इन दोनों के नाम जातियों के वोट नहीं दिलवा सकते हैं।

लोहिया के नाम पर मारवाड़ी, वैश्यों का वोट नहीं मिलना है और न जेपी के नाम पर कायस्थ का वोट मिलना है। इसलिए तमाम समाजवादियों ने ऐसे नेताओं को पकड़ा है, जिनकी जातीय पहचान स्थापित है और जिनके नाम पर जातियों के वोट मिलते हैं।

इसमें सबसे ऊपर नाम भीमराव अंबेडकर का है। उनके नाम पर पूरे देश में दलित वोट एकजुट हो रहा है। पहले समाजवादियों ने अंबेडकर को छोड़ रखा था क्योंकि पारंपरिक रूप से दलित वोट कांग्रेस के साथ जाता था और बाद में उत्तर प्रदेश में बसपा के साथ जाने लगा।

लेकिन संविधान बचाओ अभियान के साथ साथ अब जय बापू, जय भीम और जय संविधान की बात होने लगी है। अभी राहुल गांधी पटना के दौरे पर गए तो लालू प्रसाद के पूरे परिवार ने उनका स्वागत किया और उनको अंबेडकर की तस्वीर भेंट की।

सोचें, पिछले साल लोकसभा चुनाव के पहले तक न तो कांग्रेस को अंबेडकर से मतलब था और न समाजवादी पार्टियों को। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सब कुछ बदल दिया है। अब सपा को भी लग रहा है कि दलित बसपा को छोड़ कर उसको वोट दे रहे हैं तो राजद और कांग्रेस को भी लग रहा है।

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