पता नहीं राहुल गांधी और हेमंत सोरेन को कोई यह समझाता है या नहीं कि उनको जोड़ियों में Politics करने की जरुरत नहीं है। राहुल ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ जोड़ी बनाई है तो हेमंत सोरेन की जोड़ी उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के साथ बनी है। उसके बाद से ये जोड़ियों में ही राजनीति करते हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ हर जगह राहुल गांधी मौजूद रहने लगे हैं।
उनके प्रचार में वे चार दिन गए और उसके बाद वे जीतीं तो वायनाड की पहली यात्रा में भी राहुल उनके साथ गए। प्रियंका संसद में पहली बार पहुंचीं तो हर जगह राहुल उनके साथ थे। दूसरे दिन भी लोकसभा में दोनों साथ बैठे रहे, जबकि दोनों की सीट में तीन कतार का फासला है। राहुल की सीट पहली कतार में और प्रियंका की चौथी कतार में है। लेकिन दोनों एक साथ पहली कतार में बैठे रहे। फिर उत्तर प्रदेश के हिंसा प्रभावित संभल जाने की बात हुई तब भी दोनों का एक साथ जाने का कार्यक्रम बना।
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इसी तरह झारखंड में हेमंत सोरेन कहीं जा रहे हैं या कोई बैठक कर रहे हैं या किसी से मिल रहे हैं तो हर जगह कल्पना सोरेन मौजूद रहती हैं। हेमंत सोरेन रांची में बन रहे फ्लाईओवर का निरीक्षण करने गए तब भी उनकी पत्नी साथ में मौजूद थीं। अच्छी बात है कि कल्पना सोरेन राजनीति में सक्रिय हैं और इस बार के चुनाव में उन्होंने बड़ी मेहनत भी की, प्रियंका भी पार्टी के लिए मेहनत करती हैं पर दोनों को बाकी राजनीतिक जोड़ियों से सबक लेना चाहिए।
अखिलेश यादव और डिंपल यादव संसद की कार्यवाही के अलावा शायद ही कहीं साथ दिखते होंगे। दोनों के कार्यक्रम अलग अलग होते हैं और दोनों अलग राजनीति करते हैं। इसी तरह पिता और बेटी की जोड़ी है शरद पवार और सुप्रिया सुले की लेकिन पार्टी के कार्यक्रमों को छोड़ कर दोनों कहीं भी साथ नहीं दिखते हैं। ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी भी जोड़ी बना कर राजनीति नहीं करते हैं। सुखबीर बादल और हरसिमरत कौर बादल हों या एमके स्टालिन और उदयनिधि स्टालिन हों या के चंद्रशेखर राव और केटी रामाराव व के कविता हों या लालू प्रसाद और तेजस्वी व तेज प्रताप यादव हों ये लोग जोड़ी बना कर राजनीति नहीं करते हैं और न हर जगह फ्रेम में एक साथ इनकी तस्वीर होती है।