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पंजाब में ओपन डिबेट चुनौती

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले 12 साल में जितने ऑप्टिक्स क्रिएट किए, जितने फोटो ऑप्स बनाए और जितना राजनीतिक ड्रामा किया उतना शायद ही किसी और नेता ने किया होगा। बरसों पर पहले एमजी रामचंद्रन या एनटी रामाराव और बाद में लालू प्रसाद के बारे में इस तरह की बातें सुनी जाती थीं पर उनके समय मीडिया इतने व्यापक नहीं था। केजरीवाल ने अपनी पार्टी के विस्तार के लिए मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्हीं के बनाए रास्ते पर चल कर पंजाब के उनके मुख्यमंत्री भगवंत मान भी सारे समय इस तरह के काम में शामिल रहते हैं। दिल्ली और देश के अखबार तो उनकी सरकार के विज्ञापनों से भरे ही रहते हैं। केंद्र की भाजपा सरकार कहती है कि उसने नौ साल में इतना काम कर दिया, जितना 70 साल में नहीं हुआ पर भगवंत मान तो डेढ़ साल में ही इतना काम कर देने का दावा करते हैं जितने आजादी के बाद नहीं हुआ।

सो, उन्होंने अपने इस कथित काम पर एक ओपन डिबेट  की घोषणा कर दी। उन्होंने राज्य की सभी पार्टियों को न्योता दे दिया कि वे आकर उनसे बहस करें। उन्होंने इसके लिए मंच सजा लिया, तैयारी कर ली, एंकर रख दिए लेकिन कोई पार्टी नहीं पहुंची। फिर मंच पर अकेले बैठ कर विपक्ष के लिए रखी गई खाली कुर्सियों के साथ फोटो खिंचवा कर पीआर टीम के जरिए पूरे देश में भेजा। फिर अकेले बैठ कर उपलब्धियों का बखान किया। सोचें, उनको मुख्यमंत्री बने डेढ़ साल हुए हैं और राज्य में कानून व्यवस्था से लेकर वित्तीय स्थिति तक डांवाडोल है लेकिन मुख्यमंत्री मंच सजा कर विपक्ष के साथ ओपन डिबेट के लिए तैयार हैं! सवाल है कि इस तरह की बहस विधानसभा में होगी या इस तरह से खुले में मंच सजा कर होगी? उनको पता है कि बहस विधानसभा में होनी चाहिए लेकिन वहां की कवरेज ज्यादा नहीं होती है। इसलिए मीडिया के लिए यह राजनीतिक स्टंट रचा गया। उनको पता था कि विपक्ष का कोई नेता नहीं पहुंचेगा इसलिए आगे की भी तैयारी करके बैठे थे।

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