झारखंड के मुख्यमंत्री और ओडिशा के राज्यपाल रहे रघुबर दास एक बार फिर सक्रिय राजनीति में लौटेंगे। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद राष्ट्रीय स्तर पर और प्रदेश स्तर पर संगठन में फेरबदल की तैयारियों के बीच उन्होंने ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया है। राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और उनकी जगह नए राज्यपाल की नियुक्ति हो गई है। बताया जा रहा है कि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व की सहमति से रघुबर दास ने इस्तीफा दिया है।
जानकार सूत्रों के मुताबिक वे सक्रिय राजनीति में लौट रहे हैं। हालांकि यह तय नहीं है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर किसी बड़ी भूमिका का निर्वहन करेंगे या प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे। चर्चा तो यह शुरू हो गई है कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हो सकते हैं। पहले वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे हैं। गौरतलब है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है और इसके लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता के लक्ष्मण के नेतृत्व में कमेटी बना दी गई है।
बहरहाल, रघुबर दास के बारे में चर्चा थी कि वे पिछले महीने झारखंड में हुए विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने की तैयारी की थी। परंतु उस समय पार्टी नेतृत्व की तरफ से उनको रोक दिया गया। तब माना जा रहा था कि अगर वे राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो यह मैसेज जाएगा कि वे पार्टी के चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री हो सकते हैं। उस समय भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने घोषित नहीं किया था लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री पद के अघोषित दावेदार थे।
Also Read: यह नियम अजीब है
इसलिए भाजपा नहीं चाहती थी कि गैर आदिवासी राजनीति का मैसेज बने। तभी रघुबर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू को जमशेदपुर पूर्वी सीट से टिकट दिया गया और वे बहुत बड़े अंतर से चुनाव जीतीं। बाकी तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की पत्नी या बेटा चुनाव हार गए थे। झारखंड का चुनाव हारने के बाद भाजपा को लग रहा है कि उसने 2014 में जो गैर आदिवासी राजनीति शुरू की थी वह छोड़ना उसके लिए आत्मघाती है।
झारखंड में 50 फीसदी से ज्यादा आबादी पिछड़ी जातियों की है, जिसमें सबसे बड़ा समूह वैश्य और उसमें भी तेली का है। तभी माना जा रहा है कि गैर आदिवासी नेता के तौर पर भाजपा ने रघुबर दास का चेहरा आगे किया था और एक बार फिर उनको आगे करके राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है। वे पिछड़ा, वैश्य और बाहरी सबको एकजुट कर सकते हैं। ऐसा लग रहा है कि भाजपा को लगने लगा है कि झारखंड में आदिवासी को अभी कुछ समय तक हेमंत सोरेन के साथ ही रहेगा, ऐसे में रघुबर दास जैसा कोई नेता गैर आदिवासी वोट साथ ला सकता है। तभी उनके इस्तीफा देने के साथ ही झारखंड में राजनीति तेज हो गई है। पहले भी कई नेता राज्यपाल रहने के बाद सक्रिय राजनीति में लौटे और सफल भी रहे।
मोतीलाल वोरा से लेकर सुशील शिंदे और एसएम कृष्णा तक की मिसाल दी जा सकती है। हालांकि सबने राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभाई। केंद्रीय मंत्री बने या केंद्रीय संगठन में सक्रिय रहे। अगर रघुबर दास प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होते हैं तो वह नई बात होगी। कहा जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उनके लिए कोई भूमिका सोची है।