राहुल गांधी लोकसभा में नेता विपक्ष बन गए हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन के बाद से ही इसका अंदाजा लगाया जा रहा था। अब इस बात को लेकर नैरेटिव सेट करने को होड़ मची है। एक तरह कांग्रेस और उसके समर्थक पत्रकार हैं तो दूसरी ओर भाजपा उसका पूरा इकोसिस्टम है। कांग्रेस की ओर से यह नैरेटिव सेट किया जा रहा है कि राहुल गांधी ने भाजपा के इस आलोचना का जवाब दे दिया है कि वे गंभीर राजनेता नहीं हैं और जिम्मेदारी से भागते हैं। इस इकोसिस्टम का कहना है कि अपने को गंभीर और जिम्मेदार नेता बताने के लिए राहुल ने जिम्मेदारी संभाली है।
दूसरी ओर भाजपा का इकोसिस्टम कह रहा है कि चूंकि 16वीं और 17वीं लोकसभा में कांग्रेस को 10 फीसदी सीटें नहीं मिली थीं और वह मुख्य विपक्षी पार्टी नहीं बन पाई थी इसलिए राहुल नेता नहीं बने थे। उस समय नेता बनते तो उनको नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिलता। इसलिए पहले मल्लिकार्जुन खड़गे और फिर अधीर रंजन चौधरी को नेता बनाया गया। इस बार कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा मिला है और इसलिए उसके नेता को आधिकारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष माना जाएगा और उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलेगा इसलिए राहुल गांधी नेता बनने को तैयार हो गए हैं। दोनों तरफ से अपने अपने नैरेटिव को सपोर्ट करने वाली बातें मीडिया और सोशल मीडिया में चल रही हैं।
गौरतलब है कि राहुल गांधी ने पहले इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उसके बाद बताया जा रहा है कि शशि थरूर, मनीष तिवारी और गौरव गोगोई के नाम पर विचार किया गया। मनीष तिवारी का नाम कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुझाया था। हालांकि किसी न किसी कारण से तीनों में से किसी के नाम पर सहमति नहीं बनी। थरूर और तिवारी दोनों कांग्रेस के अंदर एक समय बने जी 23 ग्रुप के नेता रहे हैं और गोगोई के लिए कहा गया कि वे देश के बड़े हिस्से से कनेक्ट नहीं कर पाएंगे। हालांकि वे अधीर रंजन चौधरी से अच्छी अंग्रेजी और हिंदी दोनों बोलते हैं। हालांकि, इस मसले पर कांग्रेस में हुए विचार विमर्थ को लेकर भी भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि यह सिर्फ दिखावा था, यह पहले से तय था कि राहुल नेता बनेंगे।
बहरहाल, चाहे जिस वजह से राहुल गांधी ने लोकसभा में कांग्रेस का नेता बनना स्वीकार किया हो लेकिन यह तय है कि उनके नेता बनने से कई स्तर पर टकराव बढ़ेगा। संसद सत्र के दौरान सदन के अंदर तो टकराव होगा ही संवैधानिक, वैधानिक और प्रशासनिक नियुक्तियों में भी टकराव होगा। नेता प्रतिपक्ष के नाते राहुल गांधी लोकपाल से लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कमेटी में शामिल होंगे। सीबीआई निदेशक और सीवीसी सहित कई और नियुक्तियों में वे रहेंगे। यह जरूर है कि वे नियुक्तियों को रोक नहीं पाएंगे क्योंकि सरकार का बहुमत होता है। फिर भी उनकी आपत्तियों को दमदार माना जाएगा। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके साथ काम करने में असहज महसूस करेंगे।