कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा की जीती हुई दो सीटों में एक कौन सी सीट छोड़ेंगे, इसका फैसला वे सोमवार को करने वाले हैं। वैसे भी दो में से एक सीट छोड़ने का अंतिम दिन मंगलवार है इसलिए उससे पहले उन्हें फैसला करना ही है। कांग्रेस के जानकार सूत्रों की ओर से मीडिया को बता दिया गया है कि वे वायनाड सीट छोड़ेंगे। केरल के प्रदेश अध्यक्ष के सुधाकरण सार्वजनिक सभा में कह चुके हैं कि पार्टी के हित में राहुल गांधी वायनाड सीट छोड़ेंगे।
इसका मतलब है कि वे 18वीं लोकसभा में रायबरेली सीट के प्रतिनिधि रहेंगे। इस सीट का प्रतिनिधित्व पिछले दो दशक से उनकी मां सोनिया गांधी कर रही थीं। पार्टी अगर यह फैसला करती है तो निश्चित रूप से वह सोच समझ कर फैसला करेगी। आखिर इस बार के चुनाव में उसके फैसले सही साबित हो रहे हैं। आखिर अमेठी सीट से किशोरी लाल शर्मा को लड़ाने का फैसला भी सही साबित हुआ है।
लेकिन कायदे से राहुल गांधी को वायनाड सीट नहीं छोड़नी चाहिए। क्योंकि केरल और वायनाड ने उनको तब सहारा दिया था, जब उत्तर भारत ने उनको और उनकी पार्टी को पूरी तरह से ठुकरा दिया था। लगातार दो चुनावों में उत्तर भारत से कांग्रेस का सफाया हुआ। तब राहुल को वायनाड में ठौर मिला था। इसी तरह इंदिरा गांधी को भी 1977 में जब पूरे उत्तर भारत ने ठुकरा दिया था तब चिकमगलूर में ठौर मिला था। तभी 1980 में वे मेडक और रायबरेली दोनों जगह से जीतीं तो मेडक को चुना। उन्होंने दक्षिण का दामन नहीं छोड़ा।
पर राहुल छोड़ रहे हैं। इसका यह मैसेज जाएगा कि उनका कोई लगाव दक्षिण भारत से, केरल से या वायनाड से नहीं है। वहां के लोगों को लगेगा कि उनके पास राहुल मजबूरी में आए थे और जैसे ही मौका मिला उन्होंने उत्तर भारत को अपनी पसंद बना ली। यह थोड़ी भावनात्मक बात है लेकिन राजनीति में किसी भी तिकड़म से ज्यादा महत्व इसका होता है। उन्होंने पिछली बार वायनाड छोड़ा और उसके बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हारी। लगातार दो बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड लेफ्ट मोर्चे ने बनाया। इस बार भी ऐसा हो जाए तो हैरानी नहीं होगी। तभी अगर वे खुद छोड़ते हैं तो प्रियंका गांधी वाड्रा को वहां से चुनाव लड़ाना चाहिए।