लोकसभा के चुनाव नतीजों के बाद से भाजपा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ इस मामले में माथापच्ची कर रहे हैं कि आखिर कहां गड़बड़ हुई, जिससे नतीजे मनमाफिक नहीं आए। इस विचार मंथन में एक कॉमन बात सामने आ रही है कि भाजपा ने बाहर के नेताओं पर बहुत भरोसा किया। बाहर से आए एक सौ से ज्यादा नेताओं को लोकसभा की टिकट दी, जिनमें से ज्यादातर हारे। अपने नेताओं से ज्यादा बाहरी नेताओं पर भरोसा करने का भाजपा को नुकसान हुआ है। कई कारणों में से एक कारण इसे माना जा रहा है। फिर भी भाजपा ने इस बार राज्यसभा की नौ सीटों का ऐलान किया तो तीन सीटों पर दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को उम्मीदवार बनाया है।
ऐन लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए और लुधियाना सीट पर लोकसभा का चुनाव हारे रवनीत सिंह बिट्टू को राजस्थान से राज्यसभा भेजा जा रहा है। उन्हें तो चुनाव हारने के बाद केंद्रीय मंत्री बनाया गया है। इसी तरह लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुईं कांग्रेस विधायक किरण चौधरी को हरियाणा से राज्यसभा भेजा जा रहा है। भाजपा में इस बात को लेकर हैरानी है कि उसके पास क्या सिख और जाट नेताओं की इतनी कमी है कि तीन महीने पहले कांग्रेस से आए नेताओं को राज्यसभा भेजा जाए? ऐसे ही ओडिशा में भाजपा ने अभी सरकार बनाई है लेकिन वहां भी बीजू जनता दल की ममता मोहंता भाजपा में शामिल हुईं और राज्यसभा सीट से इस्तीफा दिया तो फिर उनको ही उस सीट से उम्मीदवार बना दिया गया। बिहार में एक सीट भाजपा ने अपनी पार्टी के किसी नेता को देने की बजाय बार कौंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा को दी है।