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कश्मीर में पहले चरण के मतदान की हकीकत

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जम्मू कश्मीर में पहले चरण की 24 सीटों के मतदान को लेकर चौतरफा यह शोर है कि रिकॉर्ड तोड़ मतदान हुआ है। मतदान के आंकड़ों को लोकतंत्र की जीत के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि केंद्र सरकार की कोशिशों से यह माहौल बना है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? अगर आंकड़ों की बारीकी में जाएं तो हकीकत दिखेगी। हकीकत यह है कि मतदान इस बार भी लगभग उतना ही हुआ है, जितना पिछली बार यानी 10 साल पहले 2014 में हुआ था। 2014 के मुकाबले मतदान प्रतिशत में बहुत मामूली बढ़ोतरी हुई है। फर्क यह है कि पहले जिन गांवों और दूरदराज के इलाकों में मतदान कम होता था वहां इस बार ज्यादा मतदान हुआ है। इसके बरक्स उन इलाकों में मतदान का प्रतिशत कम हो गया है, जहां पहले ज्यादा मतदान होता था। ऐसा राज्य की राजनीतिक स्थितियों की वजह से हुआ है।

पहले चरण में सात जिलों की जिन 24 सीटों पर मतदान हुआ है 2014 में उनकी संख्या 21 थी। तीन सीटें, डोडा पश्चिम, अनंतनाग पूर्व और पेड्डार सीट परिसीमन के बाद बढ़ी हैं। परिसीमन में सभी सीटों की भौगोलिक सीमा भी बदली है। कुछ नए क्षेत्र इनमें जुड़े हैं। पिछली बार इन 21 सीटों पर 59.94 यानी 60 फीसदी वोट हुए थे। अगर उन्हीं 21 सीटों के हिसाब से देखें तो इस बार छह फीसदी कम वोट हुआ है। लेकिन अगर नए सीटों को छोड़ कर उनके साथ जुड़े इलाकों के वोट जोड़ कर देंखे तो 24 सीटों पर पिछली बार के मुकाबले सिर्फ आधा फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसलिए मतदान प्रतिशत में बहुत बढ़ोतरी असल में सरकार की ओर से बनाए जा रहे नैरेटिव का हिस्सा है। दूसरी हकीकत यह है कि गांवों में जो कतार लगी दिखी या वोट प्रतिशत बढ़ा वह प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी की अपील की असर है। इससे पहले हर बार जमात की ओर से चुनाव के बहिष्कार का ऐलान किया जाता था। इस वजह से गांवों और दूरदराज के इलाकों में मतदान कम होता था। इस बार पुराने जमात के नेताओं ने अलगाववादी विचार वाले उम्मीदवारों का समर्थन किया है। इससे एक अलग किस्म के संकट की संभावना पैदा हो गई है।

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