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भाजपा क्यों नहीं खत्म कर पाती गतिरोध?

संसद में पहले भी गतिरोध होते थे लेकिन न तो इतने लंबे समय तक टकराव चलता था, न इतनी संख्या में सांसद निलंबित होते थे और न संसद भवन परिसर में इतना प्रदर्शन होता था। आखिर टकराव इतना क्यों बढ़ गया है और यह खत्म क्यों नहीं होता है? इसके पीछे अगर कोई राजनीति है तो वह बहुत डीप सीक्रेट है, जिसके बारे में किसी को अंदाजा नहीं है। लेकिन संसदीय राजनीति को लंबे समय तक देखने वाले सभी लोग इस बात को समझ रहे हैं कि सरकार की कोई वास्तविक मंशा टकराव खत्म कराने की नहीं है। आखिर संसद के सुचारू संचालन की जिम्मेदारी सरकार की होती है। अगर संसद सुचारू रूप से नहीं चल रही है तो इसका मतलब है कि सरकार की कोई अलग मंशा है।

असल में पिछले कुछ समय में पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच अनौपचारिक बातचीत लगभग पूरी तरह से बंद हो गई है। पहले अनौपचारिक बातचीत का चैनल हमेशा खुला होता था। पक्ष और विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं के बीच अनौपचारिक बातचीत होती थी। सांसद सेंट्रल हॉल में एक दूसरे से सहज भाव से मिलते जुलते थे। अनौपचारिक चर्चाओं से कई गतिरोध दूर  करने में आसानी होती थी। इसके अलावा संसदीय कार्य मंत्री ऐसे नेता को नियुक्त किया जाता था, जिसका विपक्षी पार्टियों के नेताओं से निजी तौर पर अच्छा संबंध हो। भाजपा की ओर से प्रमोद महाजन से लेकर वेंकैया नायडू और अनंत कुमार तक यह जिम्मेदारी निभा चुके हैं। ये सारे नेता लंबे समय तक दिल्ली की राजनीति करने वाले थे। अब प्रहलाद जोशी संसदीय कार्यमंत्री हैं, जिनका समूचा अनुभव कर्नाटक की राजनीति का है और वहां भी वे महत्वपूर्ण नेताओं में नहीं गिने जाते हैं। इस वजह से भी गतिरोध दूर करने का उपाय नहीं निकलता है। ऐसा नहीं है कि वे अनजाने में संसदीय कार्य मंत्री बन गए हैं या अनजाने में अनौपचारिक बातचीत का चैनल बंद हो गया है।

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