पंजाब में शिरोमणि अकाली दल संकट के दौर से गुजर रहा है। पार्टी के नेता सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ कई वरिष्ठ नेताओं ने मोर्चा खोला है। पार्टी टूटती दिख रही है। इसमें बागी नेताओं ने अकाल तख्त से भी अकाली दल की शिकायत की है। दबी जुबान में यह भी कहा जा रहा है कि अकाली दल की पुरानी सहयोगी भाजपा इसके पीछे है और उसने बगावत को हवा दी है। हालांकि पंजाब भाजपा के नेता इससे इनकार कर रहे हैं।
पहली नजर में यह एक राजनीतिक पार्टी का संकट दिखाई दे रहा है लेकिन पंजाब की राजनीति को जानने और समझने वालों का कहना है कि यह राज्य के लिए और राज्य में दशकों से बनी शांति व सद्भाव के लिए बहुत चिंताजनक बात है। अकाली दल की बगावत और उसमें टूट फूट का खतरा राज्य के कट्टरपंथियों को मजबूती देगा। विदेश में बैठे कट्टरपंथी और अलगाववादी संगठन इसका फायदा उठा सकते हैं।
तभी इस संकट का सुलझान सिर्फ अकाली दल के लिए नहीं, बल्कि राज्य के लिए जरूरी है। पता नहीं पार्टी के इतने वरिष्ठ नेता इस बात को कैसे नहीं समझ रहे हैं। सुखदेव सिंह ढींढसा और प्रेमसिंह चंदूमाजरा जैसे बड़े नेता अकाली दल में बगावत का नेतृत्व कर रहे हैं। बागी नेताओं ने मुद्दा भी बनाया है धार्मिक विवादों का।
अकाल तख्त से सुखबीर बादल की जो शिकायत की गई है उसमें कहा गया है कि डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख ने गुरु गोविंद सिंह जैसे कपड़े पहने लेकिन बादल ने उनको माफी दे दी। इसी तरह बहबल कलां में गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी के मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस तरह के मुद्दे उठा कर वरिष्ठ नेताओं ने सुखबीर बादल को कठघरे में खड़ा किया है। ऊपर से लगातार दो चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। इससे भी सुखबीर बादल बैकफुट पर हैं। इस मामले में भाजपा को अपने दलगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर काम करना चाहिए।