वैसे तो इन दिनों राज्यपालों में इस बात की होड़ मची है कि संसदीय परंपराओं और संवैधानिक मान्यताओं को कौन कितना उल्लंघन कर सकता है। लेकिन उनमें भी तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने बहुत ऊंचा मानक स्थापित कर दिया है। कुछ दिन पहले तो उन्होंने अपनी तरफ से तमिलनाडु का नाम ही बदल दिया था। अब उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की है। राज्यपाल ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम में कहा कि देश को आजादी तो नेताजी के प्रयासों से मिली थी। ऐसा कहने पर किसी को आपत्ति नहीं होती क्योंकि दूसरे महान स्वतंत्रता सेनानियों की तरह नेताजी का भी बड़ा योगदान है। लेकिन इसके आगे राज्यपाल ने कहा कि महात्मा गांधी का आंदोलन कुछ नहीं था।
उन्होंने बेवजह महात्मा गांधी को इस विमर्श में खींचा और कहा कि उनका आंदोलन नॉन इवेंट था। यानी उससे कुछ नहीं हुआ था। यह बात उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के संदर्भ में कही थी। सवाल है कि क्या उनकी इस बात का कोई संज्ञान लेगा? ध्यान रहे महात्मा गांधी को लेकर इस तरह की बातें सोशल मीडिया में राइट विंग ट्रोल्स कहते हैं। उनकी जयंती और पुण्य तिथि के मौके पर उनको गालियां दी जाती है और उनकी हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को महान साबित किया जाता है। लेकिन सोशल मीडिया के ट्रोल्स का मामला अलग है। क्या किसी संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति राष्ट्रपिता के बारे में ऐसी बातें कह सकता है? एक सवाल यह भी है कि अगर राज्यपाल महात्मा गांधी के बारे में ऐसी राय रखते हैं तो वे अगले हफ्ते 30 जनवरी को उनकी पुण्य तिथि के मौके पर क्या करेंगे? वे उनको श्रद्धांजलि देने जाएंगे या नहीं?