तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को रोकने की जरूरत है। वे लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनसे तमिलनाडु में नाराजगी बढ़ रही है। वे लोगों की भावनाओं को आहत करने वाले बयान दे रहे हैं। चाहे नाम बदलने का विवाद रहा हो या नीट की परीक्षा को लेकर उनकी बयानबाजी रही हो। गौरतलब है कि तमिलनाडु सरकार मेडिकल में दाखिले के लिए होने वाली नीट की परीक्षा का विरोध करती है। सरकार ने विधानसभा से एक प्रस्ताव पास कराया और राज्यपाल को भेजा। लेकिन राज्यपाल ने उसे वापस कर दिया। विधानसभा में आम सहमति से फिर से उस प्रस्ताव को वापस भेजा गया तो राज्यपाल ने उसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया क्योंकि यह समवर्ती सूची का विषय है।
सवाल है कि जब नीट की परीक्षा से तमिलनाडु को बाहर करने का विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के यहां है तो राज्यपाल ने इस पर क्यों बयान दिया? राज्यपाल आरएन रवि ने पिछले दिनों कहा कि वे अपने जीते जी इसकी मंजूरी नहीं देंगे। सोचें, जब उनको मंजूरी देनी ही नहीं है और अंतिम फैसला राष्ट्रपति को करना है फिर इस बयान का क्या मतलब है? ऐसा नहीं लग रहा है कि यह बयान उकसाने के मकसद से दिया गया था? लेकिन अगर राज्यपाल को ही इस पर फैसला करना होता तब भी इस बात का क्या मतलब है कि जीते जी इसकी मंजूरी नहीं दूंगा? भारत की संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक एकाध मामलों को छोड़ कर राज्यपालों को राज्य की चुनी हुई सरकार की सलाह पर ही काम करना होता है।