भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस के नेता और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव लंबे समय के बाद जनता के सामने आए। वे बुधवार, 11 जून को कोलावरम बांध परियोजना से जुड़े कथित घोटाले की जांच कर रही एजेंसी के सामने पेश हुए। उन्होंने इस मामले में अपनी सरकार के फैसले को सही ठहराया। लेकिन असली बात उनकी जनता के बीच मौजूदगी थी। पार्टी ने उनके लिए जबरदस्त बंदोबस्त किए थे। भारी भीड़ जुटाई गई थी और वे रोड शो करते हुए घर से निकले। उनको जैसा रिस्पांस मिला उससे पार्टी के नेताओं ने राहत की सांस ली और कहा कि अब शायद पार्टी और परिवार का झगड़ा सुलझ जाए।
गौरतलब है कि केसीआर के घर में झगड़ा लगा हुआ है। वे अपने बेटे केटी रामाराम को पार्टी की कमान सौंपना चाहते हैं लेकिन उनकी बेटी के कविता ने बगावत का झंडा उठा लिया है। उन्होंने ऐलान कर दिया है कि वे सिर्फ एक ही आदमी को नेता मानती हैं और वो हैं उनके पिता के चंद्रशेखर राव। इसका मतलब है कि वे अपने भाई को नेता नहीं मानेंगी। उन्होंने यह भी कहा है कि उनके पिता की पार्टी का भाजपा में विलय कराने की कोशिश हो रही है। सवाल है कि फिर क्या होगा? क्या केसीआर पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के नेता करुणानिधि की तरह अपने चहेते बेटे को पार्टी की कमान सौंप देंगे और दूसरे बच्चों को या तो पार्टी से बेदखल कर देंगे या अपने चहेते बेटे के अधीन कर देंगे? ध्यान रहे करुणानिधि ने स्टालिन को नेता बनाया और अलागिरी को अपनी विरासत से बेदखल कर दिया। उनकी बेटी कनिमोझी ने स्टालिन का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। तेलंगाना में अगर ऐसा होता है तो कविता बगावत करेंगी। वे स्वतंत्र रूप से एक संगठन चलाती हैं, जिसका असर राज्य में है। तभी पार्टी के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि फिर से सक्रिय हुए केसीआर परिवार और पार्टी के इस विवाद को सुलझा लेंगे।