सरकार वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन के बिल पर संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के गठन के लिए सहमत हो गई तो अब विपक्ष की मुखरता बढ़ेगी। पहले विपक्ष ने मान लिया था कि मोदी सरकार जेपीसी का गठन नहीं करती है। तभी शुरुआती कुछ दिनों को छोड़ कर विपक्ष ने जेपीसी की मांग ही छोड़ दी थी। यहां तक कि मोदी सरकार के पहले 10 साल में तो संसद की स्थायी समितियों को भी बिल नहीं भेजे जाते थे और न प्रवर समिति में कोई बिल जाता था। अब एक बिल जेपीसी को भेजा गया तो विपक्ष को लग रहा है कि रास्ता खुल गया है। इसलिए उसने कुछ अन्य मुद्दों पर भी जेपीसी की मांग शुरू कर दी है। इससे विपक्ष की तंद्रा टूटी है और उसने वह मुद्दे भी उठाने का फैसला किया है, जिसे उसने छोड़ दिया था। असल में यह विपक्ष की भी समस्या है कि वह एक मुद्दा उठाता है और थोड़े दिन उस पर शोर शराबा करने के बाद उसे छोड़ा देता है। यानी फॉलोअप का काम विपक्ष नहीं करता है।
मिसाल के तौर पर नीट परीक्षा की गड़बड़ियों पर विपक्ष चाहता था कि जेपीसी का गठन हो और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए से लेकर परीक्षा कराने वाली तमाम एजेंसियों के कामकाज की जांच हो। लेकिन विपक्ष उसे भूल चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने नीट यूजी की परीक्षा रद्द नहीं की फिर भी विपक्ष ने अपना विरोध समाप्त कर दिया। विपक्ष के एक नेता ने कहा कि अब किसी नई परीक्षा में पेपरलीक का इंतजार किया जाएगा और तब जेपीसी की मांग की जाएगी। इस बीच विपक्ष हिंडनबर्ग रिसर्च ने नया दावा किया है कि सेबी प्रमुख माधवी बुच का निवेश उसी विदेशी कंपनी में है, जिसमें अडानी समूह का निवेश है तो विपक्ष को याद आया कि उसे हिंडनबर्ग मामले की भी जेपीसी जांच की मांग करनी थी। सो, अब विपक्ष ने उसकी जांच का मुद्दा उठाया है। संसद के अगले यानी शीतकालीन सत्र में कुछ नए मामले सामने आएंगे, जिन पर विपक्ष जेपीसी की मांग करेगा।