भारत में जितनी तेजी से उप मुख्यमंत्री बनाए जा रहे हैं और राजनीतिक दांव-पेंच साधने में इस पद का जितना इस्तेमाल हो रहा है उसे देखते हुए अब लगता है कि इस पद को संवैधानिक बना देना चाहिए। अभी उप मुख्यमंत्री को कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं होते हैं। वह अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति नहीं कर सकता है। वह किसी भी दूसरे मंत्री की तरह ही होता है। इसके बावजूद राज्यों में जो महत्वपूर्ण नेता मुख्यमंत्री नहीं बन पाते हैं वे चाहते हैं कि उनको उप मुख्यमंत्री बनाया जाए ताकि उनकी नंबर दो की हैसियत पर मुहर लगे। यहां तक कि मुख्यमंत्री रहे नेता भी सहज भाव से उप मुख्यमंत्री बन जा रहे हैं, जैसे महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़नवीस अपनी सरकार में मंत्री रहे एक नेता एकनाथ शिंदे की सरकार में उप मुख्यमंत्री बन गए। वे उप मुख्यमंत्री बन कर खुश भी दिख रहे हैं और शिंदे को नेता मानने में भी उनको कोई दिक्कत नहीं है।
सो, अब मुख्यमंत्री की तरह उप मुख्यमंत्री पद में भी कुछ शक्तियां निहित कर देनी चाहिए। इससे मुख्यमंत्री का भार कुछ कम होगा और उस पद के लिए मारामारी भी कम होगी। कई बार उप मुख्यमंत्री तो इतने मजबूत होते हैं कि मुख्यमंत्री की ही हैसियत नहीं रह जाती है। जैसे अभी महाराष्ट्र में है। एकनाथ शिंदे के साथ देवेंद्र फड़नवीस और अजित पवार जैसे बड़े नेता उप मुख्यमंत्री हैं। अजित पवार के उप मुख्यमंत्री बनने से कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सत्ता का संतुलन बनाने के लिए टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाया। उससे कुछ दिन पहले कर्नाटक में सरकार बनी तो डीके शिवकुमार उप मुख्यमंत्री बने। आंध्र प्रदेश में तो जगन मोहन रेड्डी ने पांच उप मुख्यमंत्री बना रखे हैं। अपनी सरकार के पहले ढाई साल तक उन्होंने पांच अलग लोगों को उप मुख्यमंत्री रखा और बाद में उनको हटा कर पांच दूसरे नेताओं को उप मुख्यमंत्री बनाया है। अगर कुछ अधिकारी नहीं दिए जाते हैं तो रोटेशन से सभी मंत्रियों को उप मुख्यमंत्री बनाने का नियम बनाया जा सकता है। एक सुझाव यह भी है कि मुख्यमंत्री के बाद सभी मंत्रियों को उप मुख्यमंत्री ही बना दिया जाए।