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मंत्रिमंडल विस्तार भी नहीं होगा

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव की तरह केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार भी टला हुआ है। कहा जा रहा था कि बिहार चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में एक विस्तार होगा, जिसमें बिहार से कुछ नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है। लेकिन अब इसकी संभावना कम दिख रही है क्योंकि बिहार के चेहरे सरकार में शामिल करके मैसेज बनवाने का समय भी काफी कम रह गया है। अगर उप राष्ट्रपति के चुनाव यानी नौ सितंबर के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार होता है तो उसको प्रतीकात्मक ही माना जाएगा और उसका बहुत राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाएगा। गौरतलब है कि बिहार में भाजपा का सामाजिक समीकरण काफी बिगड़ा हुआ है। बिहार से उसने किसी राजपूत सांसद को मंत्री नहीं बनाया है, जिससे राजपूत नाराज हैं। ऊपर से दिल्ली में कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में बिहार के राजपूत सांसद राजीव प्रताप रूड़ी को हराने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं ने जैसा दम लगाया था उससे बिहार में नाराजगी और बढ़ी है।

इसी तरह कुशवाहा समाज को लेकर भी तनाव है। उसका वोट बिखरने की आशंका को देखते हुए कहा जा रहा था कि बिहार के राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा को केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा। मानसून सत्र से पहले कैबिनेट में बदलाव की संभावना थी, जो कि नहीं हुई। गौरतलब है कि पिछले साल जून में नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार बनने के कुछ दिन से ही मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि संगठन और सरकार में एक साथ फेरबदल होगी। अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव के लिहाज से पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु से कुछ चेहरे सरकार में आ सकते हैं। बिहार से कम से कम दो मंत्री बनाने की चर्चा थी। लेकिन समस्या यह है कि नए मंत्री बनाने के लिए हटाएंगे किसे? अगर दो भूमिहार कैबिनेट मंत्रियों में से किसी को हटाया जाता है तो उसका भी निगेटिव असर हो सकता है। इसलिए ऐसा लग रहा है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल टला रहेगा और बिहार चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति को साधने के हिसाब से बदलाव होगा। बिहार चुनाव के बड़े बड़े बदलाव की संभावना है।

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