विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर और कॉलेजों में शिक्षक की नियुक्ति के नियमों में जो बदलाव करने की सिफारिश की है उसके लेकर बड़ा विवाद शुरू हो गया है। गैर भाजपा शासित राज्यों के नेताओं ने खुल कर इसका विरोध किया है और उन्होंने कहा है कि अगर यूजीसी के मसौदे को मंजूरी मिलती है तो वे इसे अपने यहां लागू नहीं करेंगे। कई राज्य सरकारों ने इसे राज्य सूची के विषय शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करने और विश्वविद्यालयों के राष्ट्रीयकरण का प्रयास बताया है। यूजीसी की ओर से सुझाए गए बदलाव अगर लागू होते हैं तो वाइस चांसलर की नियुक्ति में राज्य सरकारों की भूमिका लगभग पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
सोचें, एक तरफ राज्य सरकारें वाइस चांसलर की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका खत्म करके नियुक्ति का अधिकार अपने हाथ में लेने के लिए कानून बना रही हैं तो दूसरी ओर यूजीसी ने उनसे पूरी तरह से अधिकार छीन लेने की पहल की है। यूजीसी के सुझावों के मुताबिक तीन सदस्यों का एक सर्च पैनल वाइस चांसलर के लिए तीन से पांच नामों की सिफारिश करेगा। इस सर्च पैनल में एक सदस्य चांसलर यानी राज्यपाल की ओर से मनोनीत होगा, दूसरा यूजीसी का होगा और तीसरा यूनिवर्सिटी के सीनेट या सिंडिकेट या जो भी निकाय वहां होगा उसकी ओर से होगा। ध्यान रहे यूनिवर्सिटीज के सीनेट और सिंडिकेट में सदस्य राज्यपाल मनोनीत करते हैं। इस तरह तीन सदस्यों की कमेटी में कोई भी राज्य सरकार का सदस्य नहीं होगा। इसमें यह चेतावनी भी दी गई है कि अगर राज्य सरकारें सिफारिश नहीं मानेंगी तो यूजीसी से मिलने वाला अनुदान बंद कर दिया जाएगा। यह शिक्षा की पूरी संघीय व्यवस्था को बदलने का प्रयास दिख रहा है।