समान नागरिक कानून का बिल संसद के मानसून सत्र में अब नहीं आ पाएगा। पहले ऐसा लग रहा था कि सरकार इस बिल को संसद में पेश करने के लिए तैयार है। लेकिन दो ऐसे संकेत हैं, जिनसे लग रहा है कि इसे नहीं पेश किया जाएगा। पहला संकेत तो यह है कि सरकार ने मानसून सत्र के लिए जो विधेयक सूचीबद्ध कराएं हैं उसमें यह बिल नहीं है। उसमें दिल्ली सरकार के अधिकारियों को लेकर जारी किए गए अध्यादेश का बिल है और डाटा प्रोटेक्शन का बिल है। इसके अलावा कुछ और भी बिल हैं। दूसरा संकेत यह है कि विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर लोगों के राय देने की तारीख 14 जुलाई से बढ़ा कर 18 जुलाई कर दी है।
बताया जा रहा है कि विधि आयोग को 14 जुलाई तक 60 लाख के करीब सुझाव मिले हैं। विधि आयोग की ओर से कहा गया है कि वह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए इन सुझावों की छंटनी करेगी। बहरहाल, अगले 14 दिन में आयोग को लाखों सुझाव और मिलेंगे। सबकी छंटनी करके और उसमें लोगों को साझा सुझाव को एक तरफ करना और उन्हें शामिल करके बिल तैयार करना आसान काम नहीं होगा। यह जरूर है कि उत्तराखंड सरकार की बनाई जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई कमेटी की ओर से एक बिल का मसौदा तैयार किया गया है और उसे केंद्र सरकार के बिल का भी आधार बनाया जा सकता है। लेकिन उसमें भी विधि आयोग को मिलने वाली राय अगर शामिल करनी है तो यह संभव नहीं है कि 11 अगस्त तक बिल तैयार करके मानसून सत्र में पेश किया जाए। सो, ऐसा लग रहा है कि नवंबर-दिसंबर में मौजूदा लोकसभा के आखिरी पूर्ण सत्र में इसे पेश किया जा सकता है। ध्यान रहे अगले साल का बजट सत्र लेखानुदान के लिए होगा और उसके बाद चुनाव की घोषणा होगी।