विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी की ओर से विश्वविद्यालयों में कुलपति और शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर नियम बदले जाने के खिलाफ विपक्षी पार्टियां एकजुट होने लगी हैं। दक्षिण भारत की पार्टियों और सरकारों ने इसकी पहल की है, जिसमें जल्दी ही बाकी पार्टियां शामिल होने वाली हैं। केरल की लेफ्ट मोर्चा की सरकार ने तो यूजीसी के नियमों में बदलाव के खिलाफ विधानसभा से एक प्रस्ताव भी पास किया है। आम राय से पास हुए इस प्रस्ताव में कहा गया है कि नए नियमों को राज्य में लागू नहीं किया जाएगा। ध्यान रहे कुलपतियों की बहाली के मसले पर ही तो पिछले राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के साथ राज्य सरकार का सबसे ज्यादा टकराव चल रहा था।
उधर तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने तो इस बदलाव के खिलाफ सबसे पहले झंडा उठाया ही था। उन्होंने कहा है कि यूजीसी को जो बदलाव करना है करे लेकिन राज्यों के विश्वविद्यालयों का चांसलर राज्यपाल या कोई और कैसे हो सकता है। गौरतलब है कि कई राज्य सरकारों ने अपने यहां नियम बना दिया है कि राज्यों के विश्वविद्यालयों का चांसलर मुख्यमंत्री को होना चाहिए। बिहार भी उन राज्यों में शामिल है। जब नीतीश कुमार राजद की मदद से मुख्यमंत्री थे तब तत्कालीन राज्यपाल फागू चौहान के साथ टकराव के बाद उन्होंने यह नियम बनाया था। अब राज्य सरकारें नए विश्वविद्यालयों की घोषणा के साथ ही यह नियम बना दे रही हैं कि उनका चांसलर मुख्यमंत्री होगा। बहरहाल, यूजीसी के बदलावों पर विपक्षी पार्टियों ने जिस तरह का रुख अख्तियार किया है उससे लग रहा है कि इस मामले में सरकार को पीछे हटना होगा नहीं तो बड़ा टकराव हो सकता है।